जलवायु परिवर्तन पर क्या हैं भारत के सामने बड़ी चुनौतियां ?

अमेजन के जंगलों में लगी आग से हम भारतीय अगर यह सोच रहे हैं कि इससे हम प्रभावित नहीं होंगे, तो हम गलतफहमी में है। अमेजन के घने जंगल धरती के इको-सिस्टम को बचाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर ये जंगल जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में जुटे हैं। भारत जैसे देश में जहां प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता ज्यादा है, जलवायु परिवर्तन की चिंता और भी बढ़ जाती है। अगर भारत को जलवायु परिवर्तन की समस्या से सही मायने में निपटना है, तो उसे प्रमुख तौर पर चार चुनौतियों से निपटना होगा।

कोयले पर निर्भरता कम करनी होगी

भारत को घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले पर निर्भरता भी कम करनी होगी। भारत में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 68 फीसदी हिस्सेदारी ऊर्जा उत्पादन सेक्टर की है। भारत ने हालांकि नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने की कोशिश की है और निजी निवेशकों को भी साथ में जोड़ा है। इसके बावजूद भी कोयले से उत्पादन को पूरी तरह से बंद करने में लंबा समय लगेगा।

जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक राजनीति

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मामले में भारत दुनिया में चौथे नंबर पर है। मगर भारत हमेशा से उत्सर्जन का बड़ा केंद्र नहीं रहा है और संचयी उत्सर्जन के मामले में भारत ने पर्यावरण को बहुत ही नुकसान पहुंचाया है। अनुसंधान संगठन ‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ के मुताबिक वर्ष 1750 से अब तक यूरोप और अमेरिका ही उत्सर्जन में सबसे आगे रहे हैं। विकसित देश औद्योगीकरण कर रहे हैं और पर्यावरण का ठीकरा गरीब देशों पर फोड़ रहे हैं। पेरिस समझौते में इस समस्या पर ध्यान दिया गया है और प्रत्येक देश के अलग-अलग लक्ष्य हैं।

पर्यावरण के अनुकूल खेती

भारत में किसानों की स्थिति में सुधार के लिए काफी कदम उठाए जाते हैं। जीडीपी में उन्हें दी जाने वाली सब्सिडी भी लगातार बढ़ती जा रही है। मगर इन प्रयासों से उलटे किसानों के लिए परेशानी खड़ी हो रही है। मसलन बिजली व यूरिया पर सब्सिडी के साथ मिलने वाला न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को ऐसे राज्यों में भी धान जैसी फसल की बुआई को प्रेरित करता है जहां पानी की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं है। भारत की कृषि नीति की वजह से पानी की कमी, पराली जलाने जैसी समस्या बढ़ रही है।
विकास और पर्यावरण में संतुलन

जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए वर्तमान और भविष्य के बीच तालमेल बैठाना सबसे अहम है। मसलन पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कार आज भले ही आराम दे रही हो, लेकिन भविष्य के स्रोत सूख रहे हैं।

भारत पेरिस समझौते को लागू करने में सक्रिय

ईयू-28 : ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 1990 से तुलना करते हुए 2030 में कम से कम 40 फीसदी की कमी लाना
अमेरिका : 2005 की तुलना में 2025 तक 26-28 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना
चीन : 2005 की तुलना में 2030 तक जीडीपी की हर यूनिट में 60-65% तक कमी लाना
भारत : 2005 की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन की मात्रा 33-35% तक कम करना

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