“जिसका कोई नहीं होता.. उसका खुदा है यारों”…कौन कहता है किताबों में.. लिखा है यारो…”

“जिसका कोई नहीं होता.. उसका खुदा है यारों”…कौन कहता है किताबों में.. लिखा है यारो…”

उपरोक्त पंक्तियों चरितार्थ किया हैं गूगल, टाटा और डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन (डीईएफ) ने। जी हां, सामाजिक सरोकार की दुनिया में वैसे तो तमाम संस्थाओं ने तरह-तरह के कार्य किए हैं.. जिससे दुखी मानवता को राहत महसूस हुई..  किंतु अब तक के इतिहास में पहली बार सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में कुछ ऐसा कार्य हुआ है.. जिसको सुनकर लोग दांतो तले उंगली दबाने पर मजबूर है। क्या आपने कभी सुना है.. जो बोल नहीं सकता.. जो सुन नहीं सकता.. अब वह भी दूसरों की मदद करेगा.. !

मतलब जो खुद लाचार है जो खुद दूसरों की मदद पर आश्रित है अब वह आत्मनिर्भर तो बनेगा ही बल्कि दूसरों की भी मदद करेगा..यह सब प्रत्यक्ष देखने को मिला रीवा जिला स्थित होटल जीत रेजिडेंसी में चार दिवसीय मूक-बधिर महिलाओं के प्रशिक्षण शिविर में।डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन (डीईएफ) के तत्वावधान में सफलतापूर्वक प्रशिक्षण संपन्न कराया गया।

मालूम हो कि डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन पूरे भारत के 24 राज्यों में अपने कई प्रोजेक्ट के माध्यम से समाज के कई वंचित वर्गों को डिजिटल सशक्त बनाकर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने में लगा है।

इसी क्रम में गूगल और टाटा ट्रस्ट की मदद से इंटरनेट साथी प्रोजेक्ट के तहत डीईएफ बिहार और मध्यप्रदेश के करीब 20 जिलों में महिला सशक्तिकरण अभियान चला रहा है। इंटरनेट साथी प्रोग्राम के तहत 14 साल से लेकर के 60 साल तक की ग्रामीण महिलाओं को मोबाइल चलाना सिखाया जाता है, ताकि वह अपनी समस्याओं का समाधान खुद खोज सकें। यह प्रोजेक्ट लगातार सफलता के सोपान पार करते हुए फेस 1 से शुरू होकर फेस 3 तक आ चुका है।

मुहीम को आगे बढ़ाते हुए गूगल, टाटा ट्र्स्ट और डीईएफ ने स्टार साथी नामक प्रोजेक्ट को लॉन्च किया है। जिसका उद्देश्य है की मूक-बधिर महिलाएं जो कि ना बोल सकती है.. ना सुन सकती हैं.. जिन्हें समाज का एक बड़ा तबका हेय दृष्टि से देखता है.. और लोगों की आम विचारणा भी है कि आखिर मूक-बधिर कर ही क्या सकते हैं.. यह तो दिव्यांग है और उन्हें बेचारे जैसे शब्द.. और सहानुभूति की दृष्टि से देखा जाता है।

इसके ठीक विपरीत डिजिटल एंपावरमेंट फाउंडेशन संस्था ने मूक-बधिर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें हाइटेक डिजिटल ट्रेनिंग प्रदान की हैं।
इन मूक-बधिर महिलाओं को स्टार साथी नाम दिया गया हैं.. जिन्हें दो मोबाइल फोन, ब्लूटूथ स्पीकर, छाता और बैग के साथ स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है। अब यह स्टार साथिया गांवों में जाकर आम ग्रामीण महिलाओं को मोबाइल चलाना सिखाएंगी और उन्हें डिजिटल बनाएंगी।…

है ना यह चौंकाने वाली बात? …
की जो ना बोल सकती है.. ना सुन सकती हैं.. वह यह सब कार्य कैसे करेंगी…

दरअसल स्टार साथिया ट्रेनिंग के उपरांत अब इतनी परिपक्व हो चुकी हैं कि यह अपनी बात आसानी से सभी तक पहुंचा सकती हैं.. इसके लिए इन्हें डिजिटल डिवाइस उपलब्ध कराई गई है.. जिनके उपयोग से यह अपना सारा कार्य आसानी से कर पाएगी.. और इनके सहयोग के लिए एक इंटरप्रेटर (द्विभाषिया) इनके साथ रहेगा.. और संस्था के जिला इकाई की टीम इनकी मदद के लिए चौबीसों घंटे तत्पर रहेगी। संस्था अभी पूरे भारत में सर्वप्रथम रीवा में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अभी शुरू कर रही है।

इसमें जो कुछ भी समस्या आएगी उनको दूर किया जाएगा। और अभी सिर्फ 4 स्टार साथियों के साथ शुरुआत हुई है 2 महीने बाद जून में 6 और स्टार साथियों को इसमें सम्मिलित किया जाएगा। और अभी फिलहाल इसको जांचा-परखा जा रहा है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसको रीवा जिले के प्रत्येक ब्लॉकों में फैलाया जाएगा। इसी के साथ इसको पूरे प्रदेश स्तर और फिर पूरे भारत के अलग-अलग प्रदेशों में स्टार साथियों का यह प्रोजेक्ट चलाया जाएगा,  ताकि जो बोल नहीं सकती.. सुन नहीं सकती.. ऐसी महिलाएं भी अपने स्वाभिमान के साथ अपना जीवन जिएं। सामान्य महिलाएं जो कार्य कर सकती हैं वह भी वह कार्य कर सकती हैं.. उनके मन में हीन भावना न आए। इसके लिए संस्था सतत प्रयासरत है। संस्था इनके लाइवलीहुड के लिए भी प्रयासरत है और इन्हें स्वरोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों से जोड़ने का प्रयास कर रही है।

 

चयनित चार मुख-बधिर महिलाओं को स्वरोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों में मौका मिलने के बाद, उन्होंने अपने अनुभव इस प्रकार शेयर किए। हालांकि उन्होंने सांकेतिक भाषा में बताया, जिसे इंटरप्रेटर (द्विभाषिये) के माध्यम ने ट्रांसलेट किया गया।

रूबी मिश्रा

“मैं रीवा  जिले  के  नेहरू नगर वार्ड की  निवासी हूं। मैं बहुत सामान्य परिवार से हूं।  मैंने 12वीं तक पढ़ाई की है मैं एक हाउसवाइफ हूं, यह प्रोग्राम हमें बहुत अच्छा लगा। पहले तो हमें कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन फिर धीरे-धीरे सारी बातें समझ में आने लगी।

मोबाइल और इंटरनेट के बारे में कई नई जानकारियां प्राप्त हुई और हमें काम करने का यह एक अच्छा अवसर प्राप्त हुआ। हमें बहुत अच्छा लग रहा है कि अब  मैं भी औरों को मोबाइल और इंटरनेट चलाना सिखाऊंगी।”-  रूबी मिश्रा

 

     सानू सिंह

“मैं रीवा शहर में रहती हूं।  मेरी मम्मी गवर्नमेंट टीचर है। मैं और मेरा भाई  दोनों ही  मूक-बधिर है।  हमारे पैरंट्स ने  हमें कभी भी  यह एहसास होने नहीं दिया कि हममे कुछ कमी है.. और उन्होंने हमें अच्छी शिक्षा दिलवाई और आई.टी.आई करवाया। जब हमें पता चला गूगल-टाटा-डी.ई.एफ. जैसी बड़ी संस्थाएं हम मूक-बधिरो के लिए कुछ काम लेकर आई है.. तो हमें भरोसा ही नहीं हुआ.. लेकिन जब मीटिंग में आए और डी.ई.एफ. के अधिकारियों से होटल में मुलाकात हुई और उन्होंने  हम सबको  समझाया  और वीडियो दिखाया तब हमें बहुत आश्चर्य हुआ और खुशी भी हुई।”- सानू सिंह

 

राखी पटेल

“मैं रीवा जिले के इटौरा ग्राम पंचायत में रहती हूं। मैं बहुत गरीब परिवार से हूं। लेकिन मेरी माँ मेरा हौसला है और वह हमेशा मेरा साथ देती है। उन्होंने बहुत संघर्ष करके मुझे पढ़ाया लिखाया अब मैं आईटीआई कर रही हूं। मेरे पास मोबाइल फोन नहीं था। और मुझसे चलाते भी नहीं बनता था।  ट्रेनिंग के दौरान हमें 3 दिनों में मोबाइल चलाना सिखाया गया। अब हमसे मोबाइल चलाना और इंटरनेट चलाना आने लगा है। मैं बहुत खुश हूं अब मैं औरों को भी मोबाइल चलाना सिखाऊंगी।” – राखी पटेल

 

किरण पाठक

“मैं रीवा जिले के करहिया ग्राम पंचायत में रहती हूं मैं एक सामान्य परिवार से हूं। मैं और मेरे पति दोनों मुख-बधिर है पति नौकरी करते हैं.. और मैं हाउसवाइफ हूं.. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं कभी सामान्य लोगों के बीच काम कर पाऊंगी.. ट्रेनिंग के दौरान हमें वीडियो दिखाया गया.. जिस पर हमारी जैसी ही मुख-बधिर महिलाएं अपना खुद का बिजनेस कर रही हैं और पैसो के साथ सम्मान भी पा रही हैं.. यह सब देख मैं बहुत प्रभावित हुई.. और गूगल-टाटा-डी.ई.एफ. का मैं दिल से धन्यवाद देती हूं।”- किरण पाठक

 

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गूगल-टाटा ट्रस्ट एवं डी.ई.एफ. संस्था द्वारा चलाए जा रहे दिव्यांग महिलाओं के लिए स्टार साथी प्रोजेक्ट कि मैं मुक्त कंठ से प्रशंसा करता हूं, यह दिव्यांग महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अनुकरणीय पहल है, संस्था जब भी हम सभी के लायक कोई कार्य सौपेंगी हम सभी यथासंभव पूरा सहयोग करेंगे।“- श्री कृष्ण कांत शर्मा, सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ रीवा.

 

                       कल तक जो बेचारी थी.. वह खुद दूजो का सहारा बन गई… ,जो फंसी थी कल मजधार में..  वो आज खुद किनारा बन गई…

 

                                                                                                                                                                   देवेंद्र द्विवेदी की रीवा से रिपोर्ट.

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