दिनों दिन बढ़ती भीषण गर्मी, तरसते कंठ और बाढ़ का जिम्मेदार कौन ?

  • डा. म. शाहिद सिद्दीकी

यूपी में ग्राम पंचायत हैदरी में इन दिनों पेयजल संकट की वजह से वहां गांव वाले इन दिनों गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। वहीं इसी ग्राम पंचायत से महज दो किलोमीटर दूर गांव पर्दीयाआवर मजरे में लोग सूखी नदी में गड्ढा खोदकर झिरी के पानी को पीकर जीवन यापन करने को मजबूर हैं।

हालात ये है कि ग्राम पंचायत हैदरी में पीने के पानी को लेकर यहां के ग्रामीणों को सुबह से ही मशक्कत करना पड़ती है। 20 से अधिक परिवार पीने के पानी के लिए 2 किलोमीटर दूर स्थित नदी में गड्ढा खोद पूरी रात पानी एकत्रित करते है औऱ सुबह पूरा परिवार बूंद-बूंद पानी कटोरी की माध्यम से बर्तन में इकट्ठा करने के बाद लेकर घर पहुंचते हैं और फिर भी दूषित पानी पीने को मजबूर है। गांव वालों का कहना है कि लंबे समय से हम पानी की समस्या का सामना कर रहे हैं। नेता आते हैं और वादा करके भूल जाते हैं। प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है।

ये हालात सिर्फ इस पंचायत या गांव की नहीं है। ऐसे हालात आज देश के कई हिस्सों में हमें देखने को मिल रहे है। लेकिन, सवाल ये है कि आखिर ऐसे हालात का जिम्मेदार कौन है। क्यों दिन ब दिन हमारी प्रकृति हमसे रूठती जा रही है?

भूजल संरक्षण नीति को लेकर लापरवाह रवैया अपनाने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कई बार पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को फटकार लगाई है। लापरवाही और प्रकृति से दुश्मनी ऐसी ही जारी रही तो देश के अन्य हिस्सों में जो असर पड़ेगा, वह तो पड़ेगा ही- ब्रज का रज (जमीन) से रिश्ता भी जरूर खतरे में पड़ सकता है। विस्फोटक गति से बढ़ रही आबादी व उसकी जरूरतें पूरी करने के लिए भूजल के अधाधुंध दोहन से वर्तमान से भी बड़ा संकट भविष्य में पैदा होने वाला है।

वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि अब भी न सुधरे तो आने वाला कल भयावह होगा। वर्ष 2011 की तुलना में वर्ष 2018 में जोन में पानी का क्षेत्रफल 0.80-1.80 वर्ग किमी घटा है। हालात यह है कि कभी देश का हरा भरा प्रदेश -यूपी भी आज सूखे से अछूता नहीं रहा। आगरा के जगनेर व खेरागढ़, फीरोजाबाद के अरांव, मैनपुरी के बरनाहल, मथुरा के फरह, कासगंज के गंजडुडवारा, सोरों, एटा का जलेसर, हाथरस का सादाबाद विकास खंड क्षेत्र भी डार्क श्रेणी में पहुंचने के कगार पर है।आगरा-अलीगढ़ जोन में 98 फीसद ऐसे सरकारी कार्यालय हैं, जहां वर्षा जल संचय को रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है। प्रति वर्ष यहां 102 सेमी. से दो मीटर तक जलस्तर गिर रहा है।

भूगर्भ जल विभाग व उप्र जल नियामक आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हर साल पेयजल, स्नान, ङ्क्षसचाई व अन्य कार्यों के लिए पानी की मांग 8.21 अरब क्यूबिक लीटर की है। इसमें वर्षा जल और रेन वॉटर हार्वेङ्क्षस्टग से करीब 4.1 अरब क्यूबिक लीटर पानी से तो भूजल रीचार्ज हो जाता है, जबकि 4.20 अरब क्यूबिक लीटर पानी धरती को लौटाया नहीं जा रहा। इसी का नतीजा है कि भूगर्भ जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है, जो चिंता का विषय है।

इसी क्रम में जलवायु परिवर्तन पर नज़र रखने वाले यूएन के वैज्ञानिकों ने भी अक्तूबर 2018 में चेतावनी दी थी कि अगर कड़े कदम नहीं उठाए गए तो बढ़ते तापमान की वजह से 2040 तक भयंकर बाढ़, सूखा, अकाल और जंगल की आग का सामना करना पड़ सकता है।

अब यह साफ हो चुका है कि इस ‘एन्थ्रोपोसीन’ युग में पर्यावरण सुरक्षा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यह सर्वविदित है कि यह दुनिया निर्धारित सीमाओं के भीतर रहने की अपनी क्षमता तेजी से खोती जा रही है। स्वास्थ्य से जुड़े स्थानीय संकट की खबरें हमारे इर्दगिर्द छाने लगी हैं।ऐसा पर्यावरण के हमारे कुप्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के असर के वैश्विक अस्तित्ववादी संकट के कारण हो रहा है। लेकिन अब सवाल ये है कि ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?

इसका जवाब इन पंक्तियों में निहित है: पहला, पानी की हरेक बूंद बचाकर हमें अपने जल संसाधनों को बढ़ाना है। हम वर्षा-जल का इस तरह संचय करें कि हरेक छत और सतह जल संकलन के काम आए। केवल सरकार का ही काम नहीं है, हमें भी इस समाधान का अंग बनना होगा। ऐसा करना हमारी पहुंच में भी है। हरेक गांव, स्कूल, कॉलोनी और संस्थान को बारिश का पानी रोकने, उसके संचयन और बारिश की हरेक बूंद को अहमियत देनी होगी।

हमें पानी की अपनी मांग कम करने पर भी ध्यान देना चाहिए। हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि पानी व्यर्थ में नहीं बहाएंगे और गंदे पानी को दोबारा इस्तेमाल में लाने लायक बनाया जा सके। हमें अपने रसोईघरों, स्नानघरों और बागीचों में पानी के कम-से-कम इस्तेमाल के तरीके भी निकालने होंगे।

इसके अलावा हम अपनी ऊर्जा जरूरतों में कटौती करते हुए भी योगदान दे सकते हैं। ऊर्जा उपकरणों की सक्षमता और प्रचुरता के जरिये हम ऊर्जा उपभोग में कटौती कर सकते हैं। ऐसा कर बदलाव का सबब खुद बनते हैं। अगर हरेक स्कूल और घर इन गतिविधियों में सक्रिय हों तो उसका प्रभाव दूरगामी और अधिक होगा। हम जिंदगी के इन सबकों को खुद जिंदगी बना सकते हैं।

 

(लेखक से संपर्क करने के लिए shahid@sadbhawna.today पर ई-मेल कर सकते हैं।)

 

 

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *