भूमण्डली उष्मीकरण का निदान: भारतीय सभ्यता और तकनिकी ज्ञान!

उष्मीकरण तबाह कर देगा, फिरोगे दाने दाने को |कटोरा हाथ में होगा, नही मिलेगा खाने को ||

भूमण्डली उष्मीकरण की ये प्रलयकारी आपदा को धरती और मनुष्य के अस्तित्व के लिए अब तक का सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है नोबल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक अल्वर्ट गोरे ने इसे २१ सदी की सबसे बड़ी चुनौती माना है |

३०० वर्षो की औद्योगिक सभ्यता ने पृथ्वी को विनाश की ओर उन्मुख बना रखा है | नासा की रिपोर्ट के अनुसार आज वातावरण में ७० फीसदी CO2 की मात्रा बढ़ गई| बाढ़, बादल फटना, सूखा, भूस्खलन, भूकंप, सुनामी तथा खण्डवृष्टि के कारण जनजीवन बेहाल है | मानव सभ्यता धीरे धीरे पतन के गर्त में धकेली जा रही हैं |

वैज्ञानिको के अनुसार एशिया महाद्वीप के पानी के सबसे बड़े स्त्रोत हिमालय ग्लेसियर तेजी से ख़त्म हो रहे है | अगर यही हाल रहा तो भारत की अधिकांस नदी की भांति सारी नदियों का पानी सूख जायेगा | पुरे देश में पानी की किल्लत को लेकर हाहाकार मचा हुआ हैं | अंतरसरकार पैनल (आई पी सी सी ) ने यह निष्कर्ष निकला है की २०५० में केवल एशिया में १ विलियन लोग पीने के पानी के लिए तरसेंगे | २०८० में २०० से ५०० मिलियन लोग खाद्यान और बाढ़ से प्रभावित होंगे | मौसम के असामान्य व्यवहार के कारण ४ माह होने वाली बरसात १ से १.५ माह में सिमट के रह गई हैं | इससे मानसून पर निर्भर देश के ६० फीसदी प्रमुख कृषि उपजो में १० से २५ फीसदी की कमी आएगी | आज माँ के दूध में भी जहर आ चूका है | वनों के अन्धाधुन दोहन व जंगलो के जल स्त्रोतो के सूखने से जंगली जानवर न केवल मर रहे हैं बल्कि शहरो में भी आक्रमण कर इंसानों को अपना ग्रास बना रहे है | हसता हुआ कल छोड़ा रोता हुआ आज क्यों बापू तेरे देश का आज बुरा हाल क्यों |

न कल कारखानें थे न इतना विकास फिर भी हम मजे में थे आज बेहाल क्यों || हसता हुआ कल छोड़ा रोता हुआ आज ||

स्थिति की गंभीरता और विकरालता को भांपकर विश्व के वैज्ञानिको ने समय समय पर कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं | कभी रियो द जेनेरो से पृथ्वी को बचाने की आवाज उठी तो कभी क्योटो में जलवायु परिवर्तन को रुकने की संधि हुई | कोपहेगन और पेरिस सम्मलेन भी धरा को बचाने के लिए बुलवाए गए | पर इन सम्मेलनों में वार्ता हमेशा की तरह तू तू मैं मै में ही फसी रही की विकसित देश को कितनी गंदगी कम करनी चाहिए जो उन्होंने वातावरण में फैलाई है, और पूर्व में किये गए प्रदुषण के लिए कितना भुगतान करना चाहिए वही विकासशील देशो को धनी की श्रेणी में आने के लिए कितना प्रदुषण करने की इजाजत होनी चाहिए | वैश्विक तापमान को २ अंश नीचे रखने का लक्ष्य जो कई वैज्ञानिको के अनुसार काफी कम हैं उसे भी हम अभी तक नहीं पा सके हैं | तो सारे विश्व को निश्चित ही अपने रणनीत मूलचूल फेरबदल करना चाहिए |

आखिर पश्चिम सभ्यता जो प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद करती है जंगल उजाडती है वन्यजीवों का नाश करती है वो अमेरिकी शैली हमारे लिए एक आदर्श कैसे हो सकती है |

शोर परिंदों ने यूं ही न मचाया होगा, कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा |
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था, जिस्म जल जाएगें जब सर पे न साया होगा ||

हमें और सारे विश्व जगत को भारतीय सभ्यता की और लौटना होगा जिसका पूरा जोर उस समरसता और लयबद्धता पर देता है जो व्यक्ति और ब्रम्हांड के बीच मौजूद है | भारतीय जीवन दर्शन में कई खामियां हो सकती हैं | पर यह प्रकृति से रिश्ते और मानवीय सम्बन्ध को संतुलित रखता है | इसे हमारी लोक संस्कृति में देख सकते हैं | यज्ञ के लिए, बसाहट के लिए वृक्ष काटिए तो लगाइए भी | जलावन के लिए केवल सूखी लकड़ी ही तोडिये | कुए खुदवाने , सामूहिक तालाब बनवाने और उसे जीवित रखने के अनेको लोकगीत और मुहावरे भोजपुरी, मैथली, मागधी, अवधी, आदि भाषा की संस्कृति से भरे पड़े हैं |हम प्रकृति के विभिन्न उपादानो को सृष्टि और नियन्ता के रूप में पूजते रहे हैं जैसे जल की पूजा , वृक्ष की पूजा , नदियों की पूजा, बच्चे के जन्म व शादी व्याह में कुआँ तालाब की पूजा, इत्यादि | हमारे ऋषि मुनियों ने प्रकृति को भगवान माना है खुद प्रकृति को गोद में निवास बनाया और जड़ी बूटियों से ही उपचार की पद्धति विकसित की, तीर्थ स्थान भी पर्वत और नदियों के पास ही बनाये गए | भारतीय संस्कृति प्रकृति का आदर सिखाती है पर शहरी आबादी को पश्चिमी सभ्यता की चमक धमक आकृषित करती जबकि अब

वहा के बुद्धिजीवी भारत की ओर शांति, स्वास्थ्य, सकून के खोज मे आ रहे हैं |
चित्रकूट में रम रहे तुलसी अवध नरेश | जा पर विपदा पड़त है आवत यही देश ||

प्रसिद्ध अमिरीकी पत्रकार मार्क टली के अनुसार जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए हमें परम्परागत भारतीय राह अपनाकर प्रकृति के संतुलन को स्थापित करना होंगा | अब १.२० अरब अनुयायियों के रोमन होने कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस ने ईसाइयत की पुरानी अवधारणा के उलट ऐतिहाषिक घोषणा में कहा कि चर्च हमें यह नहीं सिखाता कि ईश्वर ने मनुष्य को दुनिया पर प्रभुत्व स्थापित करने का अधिकार दिया हैं | उन्होंने ने कहा, हमें दुनिया से हमारे रिश्तो के बारे में भाईचारे और सौन्दर्य की भाषा बोलनी चाहिए | आमरीकी दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो ने गांधी के अवज्ञा व खादी जीवन शैली का सिद्धान्त दिया लेकिन भौतिकता की चाह रखने वालो ने सिरे से ख़ारिज कर दिया | खुद भारत ने भी अपनी सभ्यता को तिलांजलि देकर पश्चिमी माया से प्रभावित हुआ तब से हमारा जीना मुश्किल होने लगा |

यही कारण है की अंग्रेजी राज में बड़े अकाल पड़े क्युकि हमने नील, चाय, गन्ने की खेती, गुड, शक्कर और चीनी बनाने में जोर दिया | आज भी हम अपनी पूर्व की गलतियों से सबक नही लिया आज भी विदेश आयतित बीज जी एम्, बी टी, हाइब्रिड, यूरिया, और कीटनाशक का उपयोग कर उपजाऊ जमीन को बंजर बनाये जा रहे है | लघु कुटीर उद्योग की जगह कंक्रीट के बड़े बड़े सम्राज खड़े करते जा रहे हैं | अब तक की गई गलतियों को बिना देर किए हम तकनीक की सहायता से सुधार कर सकते है | जैसे २० क्विटल के एक वृक्ष से एक लाख ए४ पेपर बनाया जाता है हर साल ४ मिलियन पेंड पेपर उद्योग के लिए काटे जाते हैं यदि हम डिजिटल बन जाते है पेपर रहित कार्य करने से पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं | आज डिजिटल तकनीक के जरिये किसान खेत खलिहान में ही कृषि की उन्नत तकनीक, तौर तरीको, आगामी मौसम की जानकारी, जीपीएस के जरिये मृदा के अनुरूप फसल को उगा पा रहे हैं |

मोबाइल से ही खेत में पानी, कीटनाशक, और द्रव खाद को डालने की तकनीक विकसित की जा चुकी है | टपक सिंचाई पद्धति के द्वारा कम पानी पर ज्यादा पैदावार किया जा सकता हैं | ग्रीन हॉउस से १ साल तीन से चार बार खेती की जा सकती है | जापान पर्यावरणविद मियावाकी की तकनीक से १०० साल में तैयार होने वाला जंगल १० सालो में तैयार कर सकते हैं मात्र दो साल के बाद इसे देखरेख की भी जरुरत नही होती ये अपने आप ही विकसित होने लगता हैं | वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक से हम १ हजार वर्गफुट की छत से १ लाख लीटर बरसाती जल को भू गर्भ में उतारा जा सकता हैं | आजकल भीड़तंत्र से भी पर्यावरण बहुत प्रदूषित होता है इस प्रकार के सारे आयोजनों को डिजिटल जैसे वेबिनार, ३ डी सभाए, बड़ी स्क्रीन और टीवी चैनेल में देखा जाने सीधा प्रसारण, सारे बड़े तीर्थस्थलो पर आन-लाइन पूजा व दर्शन, वर्चुअल पर्यटक स्थलों का भ्रमण इत्यादि | हमें नवीनीकृत सौर उर्जा, पवन उर्जा का अधिकाधिक प्रयोग करना होंगा | वनों के कटाई को प्रतिबंधित कर वन प्रबंधन परंपरागत आदिवासियों को सौपना होंगा और विस्तार करना होंगा | खदाने व्यक्ति विशेष की जगह सामूहिक ग्राम पंचायत के नाम करनी होगी | हमें सार्वजनिक वाहन व कम दूरी के लिए साइकल का इस्तेमाल करना होंगा |
नहीं तो
धरती का तापमान लगातार बढ़ता रहेगा, दवाओं बादल बरसता बरसता रहेंगा |
चाँद तक भी पहुच गए है हम, पर मानव सदा चांदनी के लिए तरसता रहेंगा ||

-पुष्प प्रकाश सूर्य(पुष्पेन्द्र सिंह)

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