समीक्षा: मानवीय संवेदना में आई गिरावट का बारीकी से मुआयना है “ड्रीम कीपर” !

नए रचनाकारों को लेकर हमेशा से ही छींटा-कशी, उठा-पटक का दौर चलता रहा है, लेकिन सृजन की जमीन से जुड़ा रचनाकार समय के साथ हमेशा अपने आप को परिष्कृत करता हुआ आगे बढ़ता है। जिसने अपने समय को नहीं पहचाना वह स्वयं ही विदा हो जाता है, लेकिन जिनकी रचनाएं अपने समय का प्रतिनिधित्व करती हैं, उन्हें हर युग में याद किया जाता है। “ड्रीम कीपर” एक ऐसा ही संकलन है, जो हमारे समय के विभिन्न सामाजिक और मानवमुल्यों को कविता एवं फोटो के जरिए पाठक के सामने लाता है।

‘बिंदिया चरण’द्वारा प्रकाशित पुस्तक “ड्रीम कीपर” भी मुझे एक प्रयोग से कम नहीं लगी, जो सामूहिक रचनाकर्म और सामुहिक प्रकाशन का समावेशहै। हालांकि यह प्रयोग कोई नया नहीं है, लेकिन प्रकाशक ने फोटो और कविता के जरिए जो भावनाएं व्यक्त की है वो किसी अनोखे प्रयोग से कम नहीं है। कोमल बेदी ने इस पुस्तक में निर्भय होकर सृजनात्मक पहल करने का साहस करके एक अलग पहचान बनाने की सफल कोशिश की है। इस पुस्तक में जहां महिला के मन और व्यक्तित्व की बेहद खूबसूरती से व्यख्यान की गई है वहीं प्यार के कई रंगों को महसूस कराया गया है। इसी प्रकार जहां शादीशुदा जीवन को चित्रित किया गया तो कहीं समाज में नफरत और एक शरणार्थी के दर्द को भी इस पुस्तक में जगह मिली है।

“ड्रीम कीपर” के रचनाकार बिंदिया चरण और कोमल बेदी ने अपनी कविता और फोटो द्वारा मानवीय संवेदना में आई गिरावट का बारीकी से मुआयना करते हुए बेहद पेशेवर तरीके से पाठकों के लिए संचित किया हैं। इसलि‍ए किसी भी नएरचनाकार को पढ़कर मुझे उत्साह मिलता है और मुझे उम्मीद है कि अन्य पाठकों को भी एक नई अनुभुति मिलेगी। “ड्रीम कीपर” जैसी पुस्तकों को पढ़ कर हमें आभास ही नहीं बल्कि यकीन पुख्ता होता है कि नए रचनाकार भी बदलते समाज को देख रहे हैं और उन चुनौतियों को पाठक वर्ग के सामने ला रहे हैं।

-पवन तिवारी

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