कोरोना वायरस के कारण पूरे विश्व में लॉकडाउन और उसके असर पर केंद्रित आठ देशों के अनुभवों पर आधारित पुस्तक “अनटोल्ड डिजी-स्टोरी: लाइफ़ इन लॉकडाउन- एन एनकाउंटर विद् वोलेटाइल डिजिटल वर्ल्ड” का आख़िरकार वर्ल्डवाइड ऑनलाइन लोकार्पण कर दिया गया।
एसोसिएशन फ़ॉर कॉम्यूनिटी रिसर्च एंड एक्शन (एकरा) द्वारा इस पुस्तक का प्रकाशन किया गया है। इस संस्था के ही प्रमुख डॉ शाहिद सिद्दीक़ी इस पुस्तक के लेखक भी हैं।
बारह अध्यायों में प्रकाशित इस पुस्तक में विश्व भर में फैले महामारी कोरोना वायरस और इसके साकारात्मक और नाकारात्मक प्रभाव को दर्शाया गया है।
इस पुस्तक का मुख्य आकर्षण सामाजिक और व्यक्तिगत बदलाव का विश्लेषण है, जिसका असर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर पड़ सकता है।
“अनटोल्ड डिजी-स्टोरी: लाइफ़ इन लॉकडाउन- एन एनकाउंटर विद् वोलेटाइल डिजिटल वर्ल्ड” (Untold Digi Stories:Life In Lockdown…) पुस्तक में शामिल एक पाठ “पोवर्टी, लाइवलिहुड एंड अनएंपलोएमेंट” (POVERTY, LIVLIHOOD AND UNEMPLOYMNT) है, जिसमें कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से दुनिया भर में रोजगार की समस्या और उपाय को भी बताया गया है।
यहीं नहीं, ये किताब विश्वव्यापी शोध और डाटा को भी पाठकों के लिए प्रस्तुत करती है, ताकि उन्हें सामाजिक परिवर्तन के पीछे की कहानी और गंभीरता का अंदाजा लग सके।
पुस्तक में महामारी से लेकर वैश्विक महामारी, कोविड-19 पर फैले दुष्प्रचार को भी फ़ोकस किया गया है। जहां एक तरफ़ सोशल मीडिया ने लॉकडाउन के तरफ़ हज़ारों मज़दूरों को मदद पहुँचाई तो वहीं कैसे उसी सोशल मीडिया ने किसी विशेष वर्ग को नुक़सान पहुँचाई।
लेखक ने अपने विशेष अनुभव और शोध की बुनियाद पर दुनिया के क़रीब आठ से अधिक देशों में ग़ैर सरकारी संस्थाओं के योगदान और प्रभाव को पुस्तक में सम्मिलित किया है।
“अनटोल्ड डिजी-स्टोरी: लाइफ़ इन लॉकडाउन- एन एनकाउंटर विद् वोलेटाइल डिजिटल वर्ल्ड” के लेखक डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी ने इस पुस्तक में शिक्षा को उन पहलूओं पर भी प्रकाश डाला है, जहां एक बड़ा गरीब तबका अचानक सामाजिक बदलाव को आत्मसात् नहीं कर पा रहा है।
मालूम हो कि कोविड-19 महामारी के कारण पुरे विश्व में अलग-अलग देशों में लगाए गए लॉकडाउन की वजह से सभी स्कूल बंद कर दिए गए और स्कूल पाठ्यक्रमों को ऑनलाइन कर दिया गया।इस लॉकडाउन में सबसे अधिक उन बच्चों पर असर पड़ा, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी और वो इंटरनेट या कम्प्यूटर का खर्च वहन नहीं कर सकते।
लेखक ने विशेष तौर पर एशिया, अफ़्रीका के देशों में लॉकडाउन की वजह हुए व्यक्तिगत व्यवहार से लेकर सामाजिक स्तर पर ख़ास बदलाव का ज़िक्र किया है। इस पुस्तक को विश्व भर के शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों ने काफ़ी सराहना की है।
इस पुस्तक के बारे में यूएन इकॉनॉमिक कमिशन फ़ॉर अफ़्रीका की इकोनॉमिस्ट प्रो. अमल नागाह, कहती हैं कि “महामारी के बारे में तो हम कई सालों से बात करते आ रहे हैं, लेकिन ये क़तई अंदाज़ा नहीं था कि ऐसे पूरी दुनिया बदल जाएगी।
“अनटोल्ड डिजी-स्टोरी: लाइफ़ इन लॉकडाउन- एन एनकाउंटर विद् वोलेटाइल डिजिटल वर्ल्ड” पुस्तक एक ऐसा शोध है जो पूरी दुनिया में फैले महामारी के पर्दे के पीछे की कहानी को उजागर करता है।इस पुस्तक ने ख़ास तौर डिजिटल को फ़ोकस किया है जिसने हमें महामारी में न सिर्फ़ विकल्प दिया है बल्कि पूरी तरह से हावी हो चुका है, जिसका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ रहा है।ये पुस्तक सरकारी एजेंसी के साथ-साथ उन ग़ैर सरकारी संस्थाओं के लिए अहम है जो कोरोना काल में फ्रंटलाइन में खड़े हैं। इसे ज़रूर पढ़ना चाहिए।”
वहीं, यूएई में उम-अल-कुवैन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डॉ. एलसिर अली साद के मुताबिक़ ये किताब डाटा और रिसर्च पर आधारित एक ऐसा ज्ञान का भंडार है जिससे कोई भी पाठक या संस्थान अपने फ़ैसले लेने में मदद ले सकेगा।इस पुस्तक को लेखक ने बेहद रोचक अंदाज में डाँटा और शोध को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है ताकि किसी को भी पढ़ने में ज्ञान के साथ-साथ आनंद आए और अपने-आप को भी उस कहानी का पात्र महसूस कर सके। ये पुस्तक सामाजिक संस्थान में कार्यरत युवा, सरकारी एजेंसी के लिए ख़ास है, जो इसे पढ़ कर अपने निर्णय सहीं रूप में ले पाएँगे।”
जबकि यूके की एक यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डेविड गर्लिंग का कहना है कि “अनटोल्ड डिजी-स्टोरी: लाइफ़ इन लॉकडाउन- एन एनकाउंटर विद् वोलेटाइल डिजिटल वर्ल्ड” पुस्तक एक ज़बरदस्त शोध है जो बताता है कि कैसे दुनिया ने लॉकडाउन के दौरान डिजिटल तकनीक को अपनाया है।साथ ही ये पुस्तक डिजिटल डिवाइड की भी बात करती है, जो समाज के सबसे पिछड़े वर्ग के लिए अभिशाप है। ये पुस्तक सचमुच में एक सामाजिक आईना है जिसे देखकर हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि दुनिया कितनी बदल चुकी है और हमें कैसे बदलाव करना है।”
इन शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों के अलावा दुनिया के अलग-अलग कोने से भी प्रतिक्रियाएँ दे रहें हैं और पुस्तक की माँग कर रहे हैं।
हालाँकि, लेखक और प्रकाशक ने फ़िलहाल ई-कॉमर्स साइट “अमेजन डॉट कॉम” पर ही उपलब्ध कराया है, जबकि भारत में कुछ बड़े बुक स्टोर से भी इसे ख़रीदा जा सकता है।
– पवन तिवारी