इतिहास के सबसे बुरे दौर मे ‘हम’ और हमारी पहचान’ !

आज हम सब मानव जीवन  इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे है। आज हमे अपने देश की स्वास्थ्य सेवाओ को लेकर क्यो चिंता हो रही है??

वो इसलिए क्यो की हमारे राजनीतिक जीवन मे स्वास्थ जैसी बुनियादी सुविधाओं की कोई अहमियत है ही नही और आज जब हम सब ज़िंदगी और मौत के बीच फसे है तब भी व्यवस्था से सवाल पूछने के जगह थाली ,ताली,दिया, मोमबत्ती में व्यस्त है या यूं कहिए कि सरकार से कोई सवाल न पूछे इसलिए ताली और थाली में या उलूल जुलूल में उलझा दिया गया है।

भारत का संविधान हमे अपने चुनी हुई सरकार से सवाल पूछने का अधिकार देता है जिससे हमें पता चल सके कि सरकार हमारे लिए, अपने ननगरिको के लिए क्या क्या कर रही है!

हम अपने बुनियादी सुविधाओं को लेकर अपने सरकार एवं जनप्रतिनिधियो से पूछते रहेंगे।

जब देश का मुखिया अपनी असफलता को छुपाने की लिए “Act of God”  कहने लगता है या ध्यान भटकाने के लिए बीमारी के आंकड़ों को तरह तरह से पेश करता है मसलन मृतुदर कम है, रिकवरी रेट ज़्यादा है,फंला देश के हालात ऐसे है आदि आदि तब मेरे कुछ बुनियादी सवाल अपने जनप्रतिनिधि,वर्तमान व्यवस्था और सरकार से होते है- जैसे
मार्च से अब तक हमारे गांव या जिला के अस्पताल को कितने वेंटीलेटर मिले?
गांव, ब्लॉक स्तर पे कोरोना जांच की सुविधा क्यो नही उपलब्ध है?
राहत पैकेज का पैसा आम आदमी यानी ग़रीब, मजदूर तक कितना पहुँचा?
इस महामारी के दौरान एग्जाम कराने का क्या तुक?
युवा बेरोजगारों को रोजगार कौन देगा?
किसी महान दार्शनिक ने ठीक ही कहा है “अगर कोई सवाल उठाता है तो वह घड़ी भर का नादान है, मगर जो सवाल उठाता ही नहीं वह जीवन भर मूर्ख कहलाएगा।”
उम्मीद कम है कि इन सवालों का जबाब मिलेगा लेकिन यकीन है यदि इस देश का युवा एक होकर ,संगठित होकर,युवाशक्ति बन कर सवाल करेगा तो जबाब भी मिलेगा, सुबिधायें भी मिलेगी एवं सबको हक और अधिकार भी मिलेगा। —

इरफ़ान खान, युवाशक्ति

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *