इल्जाम ये है कि –“ चोर को चोर क्यों कहा ?”


#पैगामएपुष्प – पुष्प प्रकाश सूर्य (पुष्पेन्द्र सिंह) द्वारा छात्र राजनीति का आँखों देखा अनुभव

आज के वर्तमान परिदृश्य में जब विपक्ष लगभग ख़त्म हो चूका है जो है भी वो भी अपना कार्य ईमानदारी से नहीं कर रहा सिवाय बरसाती मेढक के भांति टर टर करने के। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ पत्रकारिता मोदी सरकार की भक्ति में ही प्रतियोगिता में सलग्न है दिनरात मोदी मोदी रटने, मोदी जी को सुपरमैन और इण्डिया का पापा व हिन्दू मुस्लिम करके असली मुद्दों को गायब कर दिया गया है, तो देश के प्रबुद्ध नागरिकों की जिम्मेदारी है की वो एक सक्रीय विपक्ष की भूमिका अदा करें। परन्तु जब हमारे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के बीच उभर रहा प्रबुद्ध नवयुवक अपनी व समाज के जायज बात के लिए सरकार से प्रश्न पूछता है तो उसे बदनाम करने के लिए नए नए शब्द गढ़े जा रहे है जैसे टुकड़े टुकड़े गैंग, देशद्रोही व् अर्बन नक्सल । ये दुष्प्रचार किया जाता है और अक्सर मेरे मित्रो द्वारा ये कहा जाता है कि छात्रों को राजनीत नहीं बल्कि केवल पढाई करनी चाहिए । तो मैंने इस पर विचार कर अपना आँखों देखा देखा अनुभव सभी के साथ साझा करना चाहूंगा ।

मैंने अपनी विद्यालयीन पढाई आरएसएस के विद्या भारती से संचालित सरस्वती विद्यालय से की, आगे महात्मा गाँधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय जो की आरएसएस के ही नाना जी देशमुख द्वारा स्थापित किया गया था वहां से स्नातक किया। इस प्रकार मेरी पूरी मुख्य पढाई १९ वर्षों तक आरएसएस समर्थित संस्थानों में पढ़ा। सरस्वती विद्यालय में कक्षा का नायक सबसे शैतान बच्चे को बनाया जाता था, जो विद्यालय परिसर में बम फोड़ देता था, जो अन्य बच्चों का खाना छीनकर खा जाता था, और अक्सर छात्र और अध्यापकों से मारपीट करता था, वोही क्यों बनाया जाता है इसका तर्क मुझे आज की राजनीत देखकर भी आजतक समझ में नहीं आया। हमारे विद्यालय में छात्रसंघ का गठन भी किया जाता था उन दिनों हमसे कोई भी कोई खास दिलचस्पी नहीं होती थी तब अध्यापकों के जवान में सदा रहने वाले गिने चुने नाम या फिर विद्यालय प्रबधन समिति के किसी सदस्य के बच्चो को बना दिया जाता था और हर शनिवार बालसभा की जाती थी जहां वर्तमान के ज्वलंत मुद्दों पर वाद विवाद, समूह चर्चा व् भाषण प्रतियोगिता होती थी । इसकी तैयारी के लिए इंटरनेट के आभाव में हम आरएसएस का एक पक्षीय साहित्य (जैसे देवपुत्र ) उपलब्ध रहता था ।इसी तर्ज में मध्यप्रदेश के सरकारी विद्यालयों में भी 2016 ये योजना लागू की गयी । तो विद्यालय के बच्चें जो अभी अवयस्क उनमे राजनीत का बीजारोपण करना क्या उचित है अथवा नहीं ?अगर हाँ तो महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र जो असली मुद्दों और सही जानकारी के साथ संवाद, वाद विवाद, समूह चर्चा कर रहे उनसे परहेज कैसा ?

आरएसएस और भाजपा ने हमेशा से विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों को राजनेताओं की नर्सरी के रूप में सींचा है यही कारण है कि अमित शाह, राजनाथ, अरुण जेटली, शिवराज, देवेंद्र फडणवीस, रवि शंकर, प्रकाश जावेड़कर, सुशील मोदी, विजय गोयल सहित आज के अधिकांश भाजपा नेता छात्र राजनीत की उपज रहे है। तो फिर 160वर्षों से भी ज्यादा के गौरवशाली इतिहास वाली छात्र राजनीत को वर्तमान सरकार क्यों दबाना चाहती है ? शायद वो छात्र राजनीत की ताकत को अच्छी तरह से जानती है जो आजादी के आंदोलन में भागीदारी कर भारत को आजाद करवाया, इंदिरा गाँधी के आपातकाल के दौरान जब सारा विपक्ष जेल की हवा खा रहा था तब विपक्ष का नेतृत्व छात्रों ने अपने हाथो में ले लिया था और इंदिरा गाँधी को आपातकाल हटाना पड़ा और साथ ही चुनाव में भी करारी हर का सामना करना पड़ा ।

” सिंहासन खली करो की जनता आती है।” “उठो नवयुवकों तुम्हे चूमने क्रांति द्वार पर आती है।”

छात्र सरकार की हर नीतियों में टकटकी लगाकर रखते है। हर नीतियों पर खुलकर विचार कर रहे है गलत निर्णयो पर मुखरता से विरोध भी।
जुल्मी जब जब जुल्म करेगा, सत्ता के गलियारों से।
चप्पा चप्पा गूंज उठेगा, इंकलाब के नारों से ।।

भाजपा और समर्थक को अभी भी छात्र राजनीत ख़राब लगती है तो सबसे पहले ABVP जो की आरएसएस का ही अनुवांशिक संगठन है को खत्म कर देना चाहिए जोकि भाजपा और जनसंघ के पहले आ चूका था।

जब देश की राजनीत में जातिवाद, परिवारवाद, पुरुषवाद, धनबल, बाहुबल, अपराध, हिंसा व् बौद्धिकता की कमी का बोलवाला है। जब देश 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है वहीं हमारे सांसदों की औसत उम्र 55 वर्ष व मंत्रिमण्डल की औसत उम्र 60 से अधिक है। संसद सत्र तू तू मैं मैं में जाया जा रहा है। तो हमें ऊर्जा, रचनात्मकता व सपनों से लबरेज देश के नवयुवकों को राजनीती में लाना होगा ताकि देश के निर्माण में कंधे कन्धा मिलाकर युवा वर्ग का पूर्ण सहयोग लिया जा सकें।

इन्साफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के।
ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्ही हो कल के।।

हाँ हमें छात्र राजनीत को स्वच्छ करने की जरुरत है नाकि ख़त्म करने की क्यूंकि 18 साल के तरुण जब महाविद्यालय में प्रवेश करता है तब तो संविधान उसे राजनीत करने की अनुमति देता है और 21 साल में जब तृतीय वर्ष में छात्र पहुँचता है तो वह चुनाव लड़ने के लिए योग्य हो जाता है। महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में मशीन नहीं बल्कि इंसान बनाया जाता है।

ज्ञानार्थ आईये,सेवार्थ जाईये

शिक्षा संस्थान उपरोक्त वाक्यों का पालन करता है तो हमें इसे आदर्श व् सकारात्मक राजनीत का पाठशाला बनाना चाहिए जहाँ हमें विवेकशील और संवेदनशील बनने की जरुरत है। और हिंसा के लिए किसी भी प्रकार की जगह नहीं होनी चाहिए।
छात्र राजनीत बहुत जरुरी है। : महात्मा गाँधी

छात्रों का राजनितिक आंदोलन में भागीदारी करना पवित्र कर्तव्य है। : प. जवाहर लाल नेहरू(1936 )

#पैगामएपुष्प – पुष्प प्रकाश सूर्य (पुष्पेन्द्र सिंह )

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