नई दिल्ली, – कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को भुनाने के लिए कांग्रेस पूरी तरह से तैयार है।
पंजाब और हरियाणा में स्थिति अस्थिर दिख रही है, जहां भाजपा बैकफुट पर है।
उदाहरण के लिए आंदोलनरत किसानों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को उनके गृह जिले करनाल में होने वाले एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए हेलीकॉप्टर तक नहीं उतरने दिया और जमकर बवाल काटा।
कांग्रेस ने सोमवार को इस घटना में किसी भी तरह की भूमिका से इनकार किया और खट्टर को अराजकता के लिए जिम्मेदार ठहराया। कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने सोमवार को कहा, जो लोग किसानों के साथ हैं, उन्हें सरकार का साथ छोड़ देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों का विरोध करने वाले विधायकों को सरकार का समर्थन करना बंद कर देना चाहिए।
किसानों के आंदोलन के बीच बन रहे सरकार विरोध रुख को अवसर के तौर पर भांपते हुए कांग्रेस ने 15 जनवरी को अखिल भारतीय कार्यक्रम शुरू करने का फैसला किया है और अपनी राज्य इकाइयों से कृषि कानूनों का कड़ा विरोध जताने को कहा है।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि भाजपा को कम से कम हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अशांति से नुकसान होने वाला है। पंजाब को छोड़कर अन्य तीन राज्यों में भाजपा का शासन है।
उत्तराखंड में कांग्रेस के पूर्व मंत्री, नव प्रभात ने कहा, भाजपा किसानों की अनदेखी कर रही है और कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचा रही है। इस बार, इन कानूनों के पारित होने के बाद किसानों को अपनी उपज एमएसपी से नीचे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
उन्होंने कहा, किसानों के लिए जो समस्याएं पैदा हुई हैं, उसका नतीजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा।
पंजाब में फरवरी में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहने वाले हैं। वहीं कांग्रेस को किसान आंदोलन के कारण यह चुनाव जीतने की पूरी उम्मीद है।
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) की ओर से कृषि कानूनों का विरोध जताने के बाद भगवा पार्टी पंजाब में अकेली पड़ गई है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि शिअद के संबंध तोड़ने के बाद भाजपा को अकेले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने कहा, हम चुनाव के लिए तैयार हैं।
हिमाचल प्रदेश में अभी-अभी संपन्न नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह क्षेत्र में बढ़त बनाने में सफल रही है। यह भाजपा के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि शहरी क्षेत्र परंपरागत रूप से भगवा पार्टी का आधार माना जाता है।