कोरानावायरस की वजह से उत्पन्न मानवीय संकट को देखते हुए, सुरक्षा एजेंसियां भारत के नक्सल बेल्ट में नक्सलियों के खिलाफ अभियान को रोकने के विकल्पों पर विचार कर रही है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि छत्तीसगढ़ में सुरक्षा एजेंसियां भारत में कोविड-19 के खतरे को देखते हुए मानवीय आधार पर संघर्षविराम की संभावना पर विचार कर रही है। भारत में इस महामारी से अबतक 700 लोगों के संक्रमित होने का पता चला है और 14 लोगों की मौत हो चुकी है।
रायपुर में नक्सल अभियान के शीर्ष अधिकारी, बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक पी सुंदर राज ने आईएएनएस को बताया कि सुरक्षाबलों के पास इस तरह के निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता है।
उन्होंने कहा, मैं केवल एक पुलिस अधिकारी हूं। बस्तर पुलिस और सुरक्षाबल यहां लोगों की जिंदगी और संपत्ति की रक्षा करने के लिए हैं। मौजूदा समय में पूरा विश्व कोविड-19 से लड़ रहा है। बस्तर पुलिस भी इस वायरस से लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।
आईजीपी ने कहा कि नक्सलियों के बीच हाइजिन एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि वे एकसाथ रहते हैं, जहां बमुश्किल स्वास्थ्य सुविधाएं होती हैं।
उन्होंने कहा, समुदाय में कोई भी सोशल डिस्टेंसिंग नहीं है और गांववाले इस समय इस बात को लेकर चिंतित हैं। वे न केवल अपनी जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं, बल्कि हजारों जनजातीय लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल रहे हैं। नक्सलियों के ऊपर इस वैश्विक संकट में हिंसा को रोकने का सामाजिक दबाव है।
उन्होंने कहा, इसके अलावा, नक्सलियों के बाहरी इलाके में लॉकडाउन की वजह से जरूरी सेवाओं को छोड़कर सारी सेवाएं ठप हैं। वैसे भी नक्सलियों द्वारा फैलाए गए आतंक की वजह से स्वास्थ्यकर्मियों का यहां काम करना हमेशा मुश्किल होता है। अब इस लॉकडाउन के समय अगर नक्सली अभी भी हिंसा का रास्ता नहीं छोड़ेंगे तो, जरूरी सेवाओं के लिए काम कर रहे लोगों का नक्सल नियंत्रण वाले क्षेत्रों में काम करना बहुत मुश्किल होगा।
अभी तीन दिन पहले ही पुलिस ने 17 सुरक्षाबलों के पार्थिव शरीर को बरामद किया था, जो राज्य के सुकमा जिले में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के बाद लापता हो गए थे।