कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा मजबूर हमारे मजदूर

लॉकडाऊन आनन फानन में कर दिया गया बिना किसी प्रीप्लेन के गरीबों की आर्थिक रीढ को तोड दिया गया। जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी सत्ता पक्ष को सावधान होने के लिए कह रहे थे उस वक्त सत्तापक्ष घूम रहा था और नाना प्रकार के भोजन का आनंद उठा रहा था।

मुझे कहने में कतई संकोच नहीं कि इस सरकार ने नाना प्रकार की योजनाओं को लागू करने में एवं भूमिका निभा योजनाओं का कोई खाका तैयार हुआ और ना ही उनसे होने वाले दुष्परिणामों के बारे में पहले से विचार किया गया। आज भी हमें याद है कि नोटबंदी के समय सत्ताधारी ओ का कहना था कि आतंकवाद और भ्रष्टाचार जड़ से मिट जाएगा।

लेकिन हुआ क्या यह हम सब जानते हैं अमीर और दिन-ब-दिन अमीर व गरीब दिन-ब-दिन और गरीब। कश्मीर में 370 लागू होने के बाद कुछ राष्ट्रवादी कश्मीर में जमीन खरीदने की बात कर रहे थे आज शायद ही उनमे से बहुत के पास अपनी सेविंग्स और खर्चा उठाने के भी पैसे बचे हो लेकिन वह इस बात को मानेंगे नहीं क्योंकि भक्तों का अलग ही भौकाल है मरते मर जाएंगे लेकिन अपनी चुनी हुई सरकार जो की पूरी तरह से गलत साबित हो रही है उसे गलत कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे।

जब सरकार को चुना गया था हम मिडिल क्लास और लोअर क्लास को इस सरकार से काफी उम्मीदें थी(अपर क्लास तो पहले ही सत्ताधारियों की थी) लेकिन सत्ता के नशे में चूर नेताओं ने सिर्फ खुद को गलत साबित ही नहीं किया बल्कि आम इंसानों को मानसिक और आर्थिक तौर पर पूरी तरह से नुकसान पहुंचाया है।

जो सरकार किसी भी धार्मिक आयोजन को राष्ट्रीय आयोजन बनाकर प्रस्तुत करती हैं और जगह-जगह लोगों के लिए भंडारे और लंगर का प्रबंध कराती है क्या उनके पास इतना पैसा नहीं कि वह गरीब मजदूरों के लिए भोजन पानी चिकित्सा और यातायात की व्यवस्था कर सके? बड़ी बेशर्मी से लोग भारत का डंका विश्व में बजने की बात कर रहे हैं क्या उन्हे भारत की यह तस्वीर नजर नहीं आती?

या आंखों पर पट्टी बांधकर को सिर्फ अपनी आत्ममुग्धता में इस प्रकार घमंड में जी रहे है कि दूसरे के दर्द का एहसास नहीं होता। अब तो मुझे यकीन हो चला है की समाज का यह वर्ग चाहता है कि निम्न वर्ग के लोग पूरी तरह से खत्म हो जाए ताकि इनका प्रभुत्व कायम हो सके।

शर्म करो कही सिर्फ अपने दिए 1 वोट को सही साबित करने के लिए हिटलर की सत्ता के पक्ष में उतर आये हो याद रखो किसी की भी हाय बहुत बुरी होती है और जब वे मजदूर असहाय के दिलसे निकले तो बड़े बड़े राजा भी रंक होते हैं।
(सईद सिद्दिकी)

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