बिलासपुर। मुंबई से हेयर स्टाइल डिजाइनिंग की इंटरनेशनल डीग्री लेने के बाद किसी ने भी ये सोचा न था कि शिल्पी राजदूत को कभी गांव रास आएगी। लेकिन, होनी को कुछ ऐसा मंजूर था। और एक दिन शिल्पी राजदूत ने मुंबई की चकाचौंध छोड़ कर देशी गोपालन और जैविक किसान बनने का फैसला कर लिया।
बेटी के इस फैसले को माता पिता ने भी कन्धा देकर आगे बढ़ाया, तो इंजीनियर भाई सत्येंदर ने भी कदम से कदम मिला कर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया। देखते-देखते पूरा परिवार के सहयोग मिल गया। औऱ फिर इस भाई बहन की जोड़ी ने पीछे कभी मुड़ कर
नहीं देखा| औऱ आज छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव “जलसो” में करीब १०० गोवंश और १५ एकड़ जैविक खेती का यह साहसी प्रयोग “सुरभी गौशाला” के नाम से मशहूर है।
बिना किसी अनुभव के अजनबी क्षेत्र में आए इस जोड़ी की दृढ़ निश्चय और लगन ने उन्हें आज मंजिल पर पहुंचा दिया है। हालांकि, शुरू के तीन साल के घाटे को उनके पिता जी ने अपने वेतन और कर्ज से पूरा किया, तो माँ ने दूध से दही, घी, मक्खन बना कर अपनी जिम्मेदारी पूरी की|
भाई ने खेत में रह कर उत्पादन की जिम्मेदारी ली ,तो बहन ने शहर में रह कर घी, दूध बेचने की भूमिका निभाई |
किताबी ज्ञान रखने वाले सिविल इंजीनियर की डिजाइन की गई गोशाला को जब आंधी उड़ा कर ले गया तब भी इस भाई बहन की जोड़ी ने हिम्मत नहीं हारी।
इस परिवार के मुखिया राजपूत जी, सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद बेटी के इस सार्थक प्रयोग में पूर्ण रूप से भागीदारी देना चाहते है और इससे होने वाले आर्थिक लाभ से समाजिक कार्य में योगदान देना चाहते है |