अस्तित्व संकटों से जूझती मन्दाकिनी नदी की सिसकिया भरी पुकार !

सती अनसुइया तप से धरती में अवतरित हुई माँ मंदाकनी गंगा अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कराह रही है पर मरहम लगाने वाला कोई भी नज़र नहीं आ रहा है। समुन्द्र निकले विषपान कर नीलकंठेश्वर महदेव को शीतलता प्रदान करने वाली कालिंजर की घाटी को सींचने वाली माँ मन्दकनी नदी जगह-जगह पर विष पिलाया जा रहा है। परमपिता ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना के लिए माँ मंदाकनी के आँचल को चुना, वही मंदाकनी नदी खुद विनाश के मुहाने में खड़ी है।

कल-कल करता 35 किमी. तक बहता पवित्र पतित सरिता जल का प्रवाह था कि मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी ने अपने दुर्दिनों वनवास को गुजारने के लिए मंदाकनी से आच्छादित अरण्य वन भूमि को चुना :

रामकथा मंदाकनी, चित्रकूट चित चारो।
तुलसी सुभग स्नेह वन, सिय बिहारो ।।

रहीम और तानसेन जैसे को महान बनाने वाली, उनके नाद में चाँद-चाँद लगाने वाली सुरमयी, सुजलां, सुफलां, मलयज शीतलाम माँ मंदाकनी को अपने चारो ओर से दहाड़ रहे रावणों और कंसों से संघर्ष करना पड़ रहा है। माँ मंदाकनी केवल नदी नहीं है बल्कि लाखो-करोड़ों भक्तो की आस्था का प्रतिक है, उसी माँ को जानकी कुंड अस्पताल के मरीजों के खून से लथपथ चादर-कपड़ों को धो-धोकर खुद बीमार पड चुकी है।

पूरी दुनिया का एक मात्र ” पुत्रजीवा” नमक दुर्लभ वृक्ष को जीवन देने वाली, माँ मंदाकनी का दूध इतना जहरीला हो चूका है कि खुद ही बच्चो के जीवन के लिए खतरा बन चूका है। बुजुर्गों व बीमारों को संजीवनी देने वाली मंदाकनी का आचमन तो दूर, नहाना भी गम्भीर रोगों का आमंत्रण देना है। संत महात्माओं का मायावी चोला ओढ़े मठाधीशों ने जगह-जगह पर छोटे-छोटे बांध व कब्ज़ा कर माता का चिरहरण करने में आमादा है और हम हाथ धार कर बैठे हुए है।

क्या मछलियों का शिकार करने के लिए खतरनाक ” जल बम ” से मन्दाकनी को घायल काने वालो को सजा नहीं मिलनी चाहिए?

चित्रकूट के घाट में, भई संतान की भीड़। तुलसीदास चन्दन घिसे, तिलक देत रघुवीर।।

माँ मंदाकनी के घावों से बह रहें मवाद से आ रही दुर्गन्ध के बीच अब क्या तुलसीदास को तिलक देने रघुवीर आएंगे ? शायद नहीं
अत्रि मुनि, अम्बुरीश, दक्ष प्रजापति, मार्कण्डेय व् सुतीक्षण जैसे दिग्गजों को जन्म देने वाली माँ को, उनके ही उत्तराधिकारी द्वारा पक्के घाट घोर यातनाए दी जा रही है।

चित्रकूट धाम कर्वी उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश की चित्रकूट विधानसभा की जनता को जीवनदायी जल प्रदान करने वाली मंदाकनी थक हार कर राजापुर में यमुना तक सफर तय करने में असहाय महसूस कर रही है। आज अगर तुलसीदास जिन्दा होते तो ये कभी नहीं लिखते |

” अब चित चेत ले चल चित्रकूट के तीर “

कई गाँवो में पूर्णतः सूख चुकी है। जिससे वहाँ कुए व नलकूप सूख गए है। आम जनमानस पेयजल के लिए दर-दर भटक रहा है।

“कामदगिरि भे राम प्रसादा अवलोकत अपहरद बिषादा”

कुबेर के शाप से पीड़ित बिहराकुल यक्ष को शरण देने वाली, आपदाग्रस्त राजा नल को शुकुन देने वाली, महाराजा युधिष्ठर व् उनके अनुजो को वनवास काल में आशीर्वाद प्रदान करने वाली मन्दाकिनी की इस दुर्दशा ने सैकड़ों मल्हार की रोजी रोटी छीन ली है। यहाँ के लोग पलायन करने को मजबूर है हमारी उदासीनता का नतीजा है की हम सरयू व पश्यूनी गंगा को खो चुके है और अब भी नहीं चेते तो मन्दाकिनी गंगा से भी हाथ धो बैठेंगे।

-पुष्प प्रकाश सूर्य (पुष्पेन्द्र सिंह)

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *