कहीं मजबूरी, तो कहीं लालच से वन्य एवं सिंचाई क्षेत्रों का अतिक्रमण, पर्यावरण को भारी नुकसान

कहीं मजबूरी में तो कहीं विकास की चाहत मानव जीवन को ही खतरे में डाल रहा है। प्रकृति के साथ की जा रही छेड़छाड़ से हालात यह बन गए हैं कि न तो हम बारिश के पानी को संजो पा रहे हैं और न ही जीवन के लिए जरूरी वायु की शुद्धता को बचा पा रहे हैं। बाग-बगीचे काटकर सड़कें बन रही है तो कहीं जलसंचयन के लिए पुरखों से धरोहर में मिले तालाब नष्ट कर इमारतें खड़ी की जा रही हैं। विकास की अंधी दौड़ के बीच में हमे पर्यावरण संयोजन के लिए भी जागरूक होना होगा। क्योंकि जिस रफ्तार से विकास के कार्य बढ़ रहे हैं उस रफ्तार से पर्यावरण को बचाने का प्रयास नहीं हो पा रहा है।

जहां अप्रैल 2018 में दिल्ली में बसे रोहिंग्या कैंप में आग लगने के बाद 25 शरणार्थी परिवारों को मजबूरीवश सरकारी सिचाई की जमीन पर आननफानन में अवैध रूप से बसाया गया। तो वहीं, रामपुर में जौहर यूनिवर्सिटी के जरिये कोसी नदी में अतिक्रमण और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना इन दिनों मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे पहले गुरुवार यानि 11 जुलाई को दिल्ली से बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने भी सरकारी जमीनों पर लगातार हो रहे अतिक्रमण को लेकर उपराज्यपाल अनिल बैजल से मुलाकात की थी। हालांकि 2018 के सितंबर में भी दिल्ली में वन भूमि पर अतिक्रमण को गिराने पर रोक लगाने के निर्देश देने से दिल्ली हाईकोर्ट ने इनकार करते हुए कहा था कि अतिक्रमण को किसी भी हाल में संरक्षण नहीं दिया जा सकता।

लेकिन, ऐसे कठोर फेसले और मीडिया की जागरुकता के बावजूद अवैध कब्जों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। देश की राजधानी दिल्ली एनसीआर में उत्तर प्रदेश की जमीन भी इससे अछूता नहीं है। अगर दिल्ली की बात करें तो विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत की वजह से भूमाफियाओं के हौसले काफी बुलंद हैं, जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश सरकार की सिचाई की जमीन का धड़ल्ले से अतिक्रमण जारी है।

नहर के किनारे खाली पड़ी जमीन पर भूमाफिया से लेकर आम लोगों ने बड़े पैमाने पर अवैध अतिक्रमण कर वहां पक्के निर्माण इसका जीता जागता सबूत है। सिचाई की जमीन पर निर्माण से पानी के बहाव में अवरोध पैदा करने से जलीय जीव जंतुओं के लिए खतरा पैदा हो गया है। इससे पर्यावरण ही नहीं, सिचाई प्रणाली को भी काफी नुकसान पहुंचा है।

साथ ही इन अवैध कब्जों में रहने वाले लोग न तो दिल्लीवाले होने का दम भर पाते हैं, न पूरी तरह उत्तर प्रदेश के ही कहलाते हैं। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में आज भी ऐसी तमाम नहरें, नाले और संपत्तियां हैं, जो दिल्ली की सीमा के दायरे में हैं, लेकिन आधिकारिक रूप से उन पर हक यूपी का है।

तस्वीरें साफ बता रहीं हैं कि कैसे देश की राजधानी में इतने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण को अंजाम दिया जा रहा है।

इसी तरह राजधानी के कई गांव और कॉलोनियां ऐसी हैं जो उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की जमीन पर बसी हुई हैं। पिछले साल उत्तर प्रदेश शासन की ओर से सिंचाई विभाग को आदेश दिया गया था कि जहां भी सिंचाई विभाग की जमीन है उसे कब्जे में लिया जाए। इसके बाद से विभाग ने अपनी जमीन तलाशना शुरू कर दिया था। तफतीश के बाद सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने पाया कि राजधानी दिल्ली में कई गांव ऐसे है जो यूपी सिंचाई विभाग की जमीन पर बसे हैं।

दिल्ली सरकार के करीबी सूत्रों ने दावा किया कि यह मसला अधिकारियों की सुस्ती और यूपी सिंचाई विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत का नतीजा है। गौरतलब है कि इस जमीन पर कॉलोनियां भी बसी हुई हैं। इनमें दक्षिण दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के गांव व कॉलोनियां शामिल हैं।

इस मामले में बातचीत के दौरान स्थानीय लोगों ने भी यहां तक बताया कि विभाग को सब कुछ पता है, लेकिन कर्मियों की मिलीभगत से ये सब हो रहा है। लोगों की बात से इतर, अगर विभाग की जमीन पर वर्षो से अतिक्रमण हो रहा है, तो उन्हें जानकारी रखनी चाहिए। साथ ही विभाग यह जानते हुए कि उसके पास कृषि योग्य या ग्रीन बेल्ट की इतनी सारी जमीन है, फिर बंदोबस्त क्यों नहीं किया गया? अवैध कब्जा होने की जानकारी नहीं है तो विभागीय अधिकारी व कर्मचारी क्या कर रहे हैं? इन सारे सवाल विभागीय अधिकारी को कठघरे में खड़ा करता है।

पर्यावरण विशेषांक के अगले अंक में उत्तर प्रदेश से सटे पूर्वी दिल्ली के उन इलाकों का खुलासा होगा, जहां उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से अरबों रुपये की जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है। पर्यावरण संरक्षण और सिंचाई एवं वन्य क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण के खिलाफ अभियान में आप भी हिस्सा ले सकते हैं।

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– डा. म. शाहिद सिद्दीकी.

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