दिल्ली- आठ फरवरी को होने वाले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चुनावों की घोषणा के साथ ही सभी राजनितिक पार्टियां द्वारा अपने आंकलन और समीकरण बनाने और बिगाड़ने की जुगत में लग गईं हैं। लेकिन दिल्लीवालों में फिलहाल जोश नजर नहीं आ रहा।
हाल ही में एक सर्वे के मुताबिक दिल्लीवालों की नजर में जहां काम के नाम पर वोट मांगने वाली आम आदमी पार्टी पहली पसंद है, वहीं बीजेपी औऱ कांग्रेस में दूसरे स्थान के लिए टक्कर है। ऐसे में कहा जा सकता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली जैसी मूलभूत सुविधावों को दिल्ली में जन-जन तक पहुचाने का फायदा केजरीवाल_सरकार को मिल सकता हैं, वहीं बीजेपी को नागरिकता संशोधन कानून से कुछ नुकसान और कांग्रेस को जेएनयू और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पक्ष में खड़ा होने से कुछ मदद मिलने की उम्मीद है।
मालूम हो कि पिछली बार 2015 के विधानसभा चुनावों में, केजरीवाल ने अपनी पार्टी का नेतृत्व करते हुए दिल्ली विधानसभा की कुल 70 सीटों में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उसी समय, भाजपा केवल तीन सीटों पर सिमट गई थी और कांग्रेस का पूरी तरह से सफ़ाया हो गया था। 2014 के बाद से लगातार दो आम चुनावों में, कांग्रेस दिल्ली से एक भी सीट नहीं जीत सकी। लगभग 14.6 करोड़ दिल्ली के मतदाताओं की पसंद इस बार भी आसान नहीं है, क्योंकि उन्होंने केजरीवाल सरकार के काम को देखा है। केजरीवाल सरकार द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों की दिल्ली के नागरिकों ने सराहना की है। इसी बीच आम आदमी पार्टी (AAP) ने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। पार्टी ने 46 मौजूदा विधायकों को टिकट दिया है, वहीं 9 सीटों पर नए उम्मीदवारों की घोषणा की गई है. इसके अलावा 8 महिलाओं को भी टिकट दिया गया है।
बिजली और पानी जैसी बुनियादी ढांचागत सुविधा प्रदान करके और, केजरीवाल की सरकार ने उन मतदाताओं के बहुमत के विश्वास को बनाए रखने में कामयाबी पाई है जिन्होंने उनकी पार्टी के लिए मतदान किया था। साथ ही दिल्ली की महिलाओं को मुफ्त बस की सवारी देने से भी आम आदमी पार्टी को मदद मिली है क्योंकि महिला मतदाता इस कदम से प्रभावित लगती हैं। वहीँ उसके सामने केंद्र सरकार के द्वारा किया गया काम भी जिसमे मोदी सरकार द्वारा लाया गया नागरिकता नियम संशोधित कानून (सीएए) के चल रहे विरोध से उत्पन्न हो रहे जन रोष से लाभ की उम्मीद भी है क्योंकि भाजपा के शीर्ष चुनाव रणनीतिकारों को लगता है कि जुड़वां मुद्दे पार्टी की चुनावी मदद करने जा रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दोनों आश्वस्त हैं कि उनका आक्रामक राष्ट्रवाद उनकी पार्टी के लिए वोट सुनिश्चित करेगा। हालांकि बीजेपी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में नागरिकता संशोधन कानून और नागरिकता रजिस्टर यानी सीएए और एनआरसी को तरजीह देती नहीं दिख रही है। बीजेपी नेताओं के बयानों या उनके सोशल मीडिया पोस्ट से इसकी पुष्टि की जा सकती है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव घोषित होने के दिन अपने पांच ट्विट के जरिए दिल्ली चुनाव का एजेंडा रखा और दिलचस्प है कि इसमें सीएए-एनआरसी का जिक्र भी नहीं है। ऐसे मौके पर, जब बीजेपी इन दोनों मुद्दों को उठाना नहीं चाहती, तब जेएनयू का विवाद मानो बीजेपी के लिए लॉटरी खुलने जैसी घटना हो गई है। नागरिकता के सवाल को लेकर देश में हो रहे हंगामे और विदेश में इस बारे में हो रही निगेटिव चर्चा बीजेपी को पसंद नहीं आ रही है। इसके मुकाबले बीजेपी आसानी से कह पाएगी कि जेएनयू में तथाकथित टुकड़े-टुकड़े गैंग से निपटने के लिए नरेंद्र मोदी सबसे उपयुक्त हैं। जेएनयू को लेकर गढ़ी गई सच्ची या झूठ छवि की वजह से, वहां होने वाला कोई भी विवाद बीजेपी को रास आता है। इसके अलावा, भाजपा यह भी सोचती है कि मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग हमेशा वही सरकार चाहता है जो केंद्र में हो। भाजपा के पास किसी भी चुनाव में कुछ अतिरिक्त फायदे रहते हैं क्योंकि उसके पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए समर्पित कैडर हैं।
कांग्रेस भी मतदाताओं के उन वर्गों में से कुछ को फिर से हासिल करने की उम्मीद कर रही है जो मोदी और शाह दोनों के आक्रामक अहंकार से अपने आप को निराश महसूस कर रहे हैं। इसके साथ ही उन मतदाताओं का भी जो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की अच्छी पुरानी शासन शैली को याद करते हैं जिन्होंने शहर की बुनियादी सुविधाओं में सुधार करके संघ की राजधानी का विकास किया। कांग्रेस को यह भी उम्मीद है कि जामिया मिलिया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों के विरोध प्रदर्शन की दिल्ली पुलिस उसे चुनावी मदद करने जा रही है क्योंकि केजरीवाल आंदोलनकारी छात्रों के साथ खड़े होने में विफल रहे हैं जैसा कि वो पहले किया करते थे।
हालांकि अन्य छोटे दल जैसे जदयू, कम्युनिस्ट पार्टियां भी मैदान में हैं, लेकिन वे मामूली खिलाड़ी प्रतीत होते हैं। लेकिन उनमें से ज्यादातर आम आदमी पार्टी से ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले हैं। साथ ही ये खिलाड़ी अनजाने में भाजपा की मदद करेंगे। हालांकि चुनाव के किसी भी निश्चित परिणाम की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। इस समय जब चुनावी प्रचार को गति नहीं मिल पा रही है तो ऐसे समय में आम आदमी पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे दिख रही है। जैसे-जैसे चुनाव प्रचार बढ़ता है और विभिन्न दलों के नेता अन्य मुद्दों को उठाते हैं, दृश्य बदल सकता है।
फिलहाल दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के पर्चा दाखिल करने की प्रक्रिया मंगलवार से शुरू हो गई है। नामांकन दाखिल करने के लिए चुनाव आयोग ने 36 चुनाव कार्यालय बनाए हैं। दिल्ली के 11 जिलों के चुनाव अधिकारी उम्मीदवारों के नामांकन पत्र लेने का काम करेंगे। निर्वाचन आयोग के अनुसार, दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 21 जनवरी है और उम्मीदवार 24 जनवरी तक अपना नामांकन वापस ले सकते हैं।
दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटों के चुनाव के लिए आठ फरवरी को मतदान होना है। नतीजे 11 फरवरी को घोषित होंगे। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 फरवरी को समाप्त हो जाएगा।