राजनीतिक दलों ने सुखा, बाढ़ की समस्या की अनदेखी की: राजेंद्र सिंह

स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से सम्मानित जल कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह तमाम राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्र से निराश हैं। उनका कहना है कि सभी दलों के घोषणा-पत्रों में पेयजल, सिंचाई, नदी संरक्षण जैसे मसलों पर आधे-अधूरे तरीके से बातें कही गई है, मगर देश में बढ़ते सुखाड़ और बाढ़ से होने वाली बर्बादी से सभी दलों ने पूरी तरह आंखें मूंद रखी हैं।

जल-जन जोड़ो अभियान द्वारा तैयार ‘भारत की जनता का चुनाव घोषणा पत्र’ जारी करने के बाद राजेंद्र सिंह ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, “बीते लोकसभा चुनाव में वर्तमान सत्ताधारी दल ने तमाम वादे किए थे, मगर क्या हुआ, यह सबके सामने है। चुनाव सामने है, एक बार फिर सभी दलों ने जल संरक्षण के वादे किए हैं, मगर देश के विभिन्न हिस्सों में बढ़ते सूखे और बाढ़ से निर्मित होने वाली स्थितियों से निपटने का किसी भी दल ने वादा या कोई खाका पेश नहीं किया है।”

आखिर सरकारों को सूखा और बाढ़ से निपटने के लिए क्या करना चाहिए? सिंह ने कहा, “जरूरत है कि बारिश के पानी को रोकने के इंतजाम किए जाएं। यानी तालाब तो बनें ही साथ में जो जल संरचनाएं हैं उनको सुधारा जाए। इससे सूखे के हालात नहीं बनेंगे। इसके अलावा नदियों से रेत खनन को रोका जाना चाहिए, अतिक्रमण हटाए जाएं, जिससे नदियों का क्षेत्र अपने मूलरूप में रहेगा और बाढ़ की स्थिति आसानी से नहीं बनेगी।”

भाजपा के दृष्टि-पत्र का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा, “आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने जल जीवन मिशन से लेकर जल शक्ति मंत्रालय के गठन तक का वादा किया है। जल शक्ति मंत्रालय देश के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी नदियों को जोड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगा। दुनिया इस बात की गवाह है कि ये परियोजनाएं अधिकांश स्थानों पर असफल रही हैं। बात तो वर्ष 2024 तक हर घर में नल का पानी पहुंचाने की हुई है, मगर वास्तविकता यह है कि 362 जिले सूखाग्रस्त हैं, जल संकट ग्रस्त क्षेत्र का दायरा बढ़ता जा रहा है।”

कांग्रेस के घोषणा-पत्र में किए गए वादों पर सिंह ने कहा, “कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में गंगा नदी और शुद्ध पेयजल के मुद्दे पर सिर्फ सतही बातें की हैं। पेयजल उपलब्धता के लिए अलग मंत्रालय का वादा किया गया है। यह हर कोई जानता है कि मंत्रालय बनाने से पानी का संकट हल नहीं होता। लोगों में जागृति के लिए जल साक्षरता पर जोर दिए जाने की जरूरत है, मगर कांग्रेस ने उस पर ध्यान नहीं दिया।”

गर्मी का मौसम आते ही सूखा और बारिश में बाढ़ की घटनाओं के सुर्खियां बनने के सवाल पर सिंह कहते हैं, “देश के 16 राज्यों के 362 जिले जल संकट से जूझ रहे हैं। नदियों में सिर्फ बरसात के मौसम में पानी होता है, तालाब लापता होते जा रहे हैं। वहीं, बारिश में असम, उत्तर प्रदेश और बिहार में बाढ़ कहर बरपाती है। मध्य प्रदेश जैसे राज्य में थोड़ी ज्यादा बारिश होने पर कई हिस्से जलमग्न हो जाते हैं। यह अचानक नहीं हुआ है, बल्कि योजनाएं और राजनीतिक दलों की नीयत साफ न होने के कारण ऐसा हुआ है।”

जलवायु परिवर्तन से आमजन के जनजीवन पर पड़ने वाले असर का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा, “जलवायु परिवर्तन से बेमौसम बरसात होने के कारण मिट्टी कटकर बहती रहती है, इसके चलते एक तरफ जहां बारिश का पानी ठहरता नहीं है तो दूसरी ओर बाढ़ के हालात बन जाते हैं। जब तक वृक्षारोपण, नदियों की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास नहीं होंगे, तबतक सुखाड़ और बाढ़ से निपट पाना आसान नहीं है।”

इस दिशा में सरकारों द्वारा तैयार की जाने वाली योजनाओंपर उन्होंने कहा, “सरकारें सूखा और बाढ़ आने पर योजनाएं तो बनाती हैं, करोड़ों रुपये भी मंजूर करती हैं। मगर ये सिर्फ सरकार के चेहतों के लाभ का जरिया ही साबित होती हैं। सूखा और बाढ़ के नाम पर सरकार का खजाना साल-दर-साल खाली होता रहेगा, लेकिन हालात नहीं बदलेंगे। इसलिए जरूरी है कि सूखा और बाढ़ से निपटने के सार्थक प्रयास किए जाएं, जो राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्रों में नजर नहीं आता।”

 

सौजन्य- आईएएनएस

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