विंध्य पर्वत की गोद में बसे एक शहर से तानसेन, बीरबल का है जन्मों का रिश्ता !

विंध्य पर्वत श्रेणी की गोद में फेले हुये विंध्य प्रदेश के मध्य भाग मे बसा हुआ रीवा शहर जो मधुर गान से मुग्ध तथा बादशाह अकबर के नवरत्न जैसे तानसेन एवं बीरबल जैसे महान विभूतियों की जन्मस्थली रही है। कलकल करती बीहर एवं बिछिया नदी के अंचल में बसा हुआ रीवा शहर बघेल वंश के शासकों की राजधानी के साथ विंध्य प्रदेश की भी राजधानी रहा है। ऐतिहासिक प्रदेश रीवा विंश्व जगत मे सफेद शेरों की धरती के रूप मे भी जाना जाता रहा है रीवा शहर का नाम रेवा नदी के नाम पर पडा जो कि नर्मदा नदी का पौराणिक नाम कहलाता है। पुरातन काल से ही यह एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग रहा है जो कि कौशाम्बी प्रयाग बनारस पाटलिपुत्र इत्यादि को पश्चिमी और दक्षिणी भारत को जोडता रहा है।

रीवा पुराने विंध्यप्रदेश की राजधानी थी तथा एक संभागीय मुख्यालय होने के कारण इस क्षेत्र में एक प्रमुख नगर के रूप मे जाना जाता रहा है। इम्पीरियल गजेटियर और रीवा स्टेट गजेटियर के अनुसार 19वीं शताब्दी मे व्याघ्रदेव ने कालिजर के पास अपना राज्य बनाया और बघेलखण्ड की नीव डाली। मुगल सम्राट अकबर के समय मे बघेल राजाओं की राजधानी बांधवढ थी। मान्यता है कि बांधव अर्थात रघुवशी राज के अनुज लक्ष्मण ने बांधवगढ का निर्माण कराया था और वे बांधव नरेश थेे। शिव संहिता मे भी इनके प्रमाण मिलते है। लक्ष्मिन जाति आदिवासियो के इष्ट है परन्तु इतिहास मे इसका कोई साक्ष्य नही है। बघेल शासको ने इसे लक्ष्मण की गद्दी मानकर स्वयं को उनका उत्तरधिकारी घोषित कर दिया। आज भी राजाधिकराज के गद्दी की पूजा रियासत के वंशज दशहरा के दिन करते है। गद्दी पर कोई बैठता नहीं अकाल तख्त की तरह पूज्य है। राज्य की राजधानी बांधवगढ से रीवा स्थानांतरित हुई तब भी वे बांधव नरेश ही कहलाते रहे यहां लक्ष्मण के नाम से विस्तुत बाग और भूखण्ड है।

रीवा नगर की बढती हुई आबादी को देखते हुए 11 अक्टूबर 1946 मे रीवा स्टेट म्यूनिसीपल एक्ट 1946 को विंध्य प्रदेश म्यूनिसीपल एकट मे परिवर्तित किया गया जिसके प्रमुख महाराजा मार्तण्ड सिंह बने। सन् 1951 मे जब प्रथम आमचुनाव की घोषणा हुई तो विंध्य प्रदेश का भी अपनी मंत्री मंडल बना।

रीवा के बाधव नरेशो ने संगीत के क्षेत्र मे काफी रूचि ली थी रीवा नरेश महाराज रामचन्द्र स्वयं संगीत के अच्छे ज्ञाता थे और अनेक संगीतकारो को उनहोने प्रश्रय दिया था। इन्ही संगीतकारो में संगीत सम्राट तानसेन का नाम उल्लेखनीय है संगीत सम्राट तानसेन रीवा की राजधानी बांधवगढ मे महाराज रामचन्द्र के संरक्षण मे आठ वर्ष तक रहे और उसके पश्चात मुगल सम्राट अकबर के नौ रत्नो मे से एक बने।

सम्राट अकबर दिल्ली आगर का शासक बना देशभर के कलाकारो को अपने दरबार मे शामिल की मुहिम मे उसका ध्यान तानसेन पर गया। तानसेन ख्याति के शिखर पर थे और बांधव नरेश के दरबारी गायक थे। अकबर ने राजा रामचन्द्र से तानसेन की मांग की। पहले तो राजा ने आनाकानी की और युद्ध तक के लिए तैयार हो गये लेकिन तानसेन ने महाराज को समझाया। रामचन्द्र ने दुखी मन से तानसेन को स्वयं पालकी मे कंधा देकर विदा किया।

सम्राट के नौ रत्नों में एक बीरबल भी थे जो इसी धरती की देन है उनका जन्म गोधरा जिला सीधी मे ग्राम में हुआ था लोक मान्यता है कि बीरबल को गोधरा की देवी का वरदान प्राप्त था।

महाराज वेंकट रमण सिंह के शासन काल मे 3 बार अकाल पडा और इसका मुकाबला करने के लिए महाराज ने गोविन्दगढ मे विशाल तालाब के साथ ही रीवा में वेंकटभवन का निर्माण कराया जिसमे उपरी भाग में तारामण्डल नीचे रहस्यमयी सुरंगे बनाई थी।

इस वंश के 22 वें नरेश महाराजा विक्रमादित्य सन 1618 ने गद्दी पर बैठे और बीहर बिछिया के संगम स्थल के किनारे रीवा नगर को बसाया। आज रीवा नगर को बसे हुए 400 वर्ष होने जा रहे है यह नगर इस क्षेत्र के 400 वर्षो के इतिहास को अपने अंक में समेटे हुये है। भारतीय प्राचीन संस्कृति और स्थानीय संस्कृति के रंगो का सम्मोहक मिश्रण है यहां शैवमत, वैष्णवमत, नाथमत, संतमत सभी परिलक्षित होते है। नगर में महामृत्युजंय मंन्दिर किला रीवा, शिव मंदिर कोठी कम्पाउण्ड विष्णू मंन्दिर लक्ष्मण बाग देवी मंन्दिर रानी तालाब हनुमान मंदिर चिरहुला और रामसागर बडी दरगाह अमहिया, छोटी दरगाह कटरा धार्मिक आस्था के केन्द्र है। यह भू भाग शिव, राम मार्कण्डेय तथा कबीर की तपस्थली रहा है।

पांचवी शताब्दी में यह क्षेत्र मगध के गुप्त सम्राटों के अधीन रहा जिसके पश्चात इस क्षेत्र मे कलचुरि चेदि और हैद्य वंश के राजाओ ने राजय किशा ईसा की 12वी शताब्दी में कल्चुरी राजाओ नेे कला के विकास मे अभूतपूर्व योगदान दिया। कई मंदिरों और विशाल मूर्तियो का निर्माण कराया इसमे शिव गौरी प्रतिमा काल भैरव अनूठी प्रतिमाये है। इसके बाद लगभग 100 वर्षो तक यह क्षेत्र सेंगरों और गोडो के हांथो मे रहा 13 वीं शताब्दी मे इस क्षेत्र मे ंबघेल राजपूतो का अधिपत्य हुआ।

कहा जाता है कि बांधव नरेश विक्रमादित्य शिकार के खेलने के शौकिन थे और शिकार खेलते खेलते रीवा की प्राचीन बस्ती मे पहुंचे कर उनहोने अपने शिकारी कुत्तों को एक खरगोश का पीछा करते पाया। कुछ देर तक दौडते दौडते खरगोश एक ऐसो स्थान पर पहुंच गया जहां वह कुत्तों के मुकाबले खडा हो गया। महाराज विक्रमादित्य ने ऐसी अद्भुत घटना को देखकर सोचा, जहां पहुंच कर खरगोश शिकारी कुत्तों का मुकाबला करने के लिए खडा हो सकता है वहां की मिटटी मे यदि मनुष्य रहे तो निश्चत ही उसमे असाधारण शक्ति और साहस होगा। इसी कारण उन्होने किले का निर्माण करवाया और अपनी राजधानी स्थापित की। यहां पर भगवान महामृत्युजय का मंदिर स्थापित किया।

रीवा सफेद बाघो की जन्म स्थल दुनिया मे जितने भी सफेद बांघ है ये सभी मोहन के वंशज माने जाते है यहा कुल 34 संताने हुये और देश विदेश मे यहां से ले जाये गये। दुनिया का पहला सफेद बाघ मोहन 27 मई 1951 में बरगरी सीधी के जंगल में देखा गया था स्वर्गी महाराज मार्तंड सिंह ने इसे पकड़ कर गोविंदगढ़ के किले में रखा किले का नाम था बाग महल महाराज ने मोहन को अपने परिवार का दर्जा दिया और कोई व्यक्ति महाराज मार्तंड सिंह ने बाघ के शिकार पर रोक लगा दी एवं 1968 में बांधवगढ़ को एक राष्ट्रीय अभ्यारण बनाने की अनूठी पहल तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से की महाराजा मार्तंड सिंह के अथक प्रयासों से मोहन के जोड़े से प्रजनन के बाद सफेद बाघों की निरंतर उत्पत्ति होती गई इसके चलते दुनिया भर में मोहन के वंशज पहुंच गए देश विदेश में रीवा रियासत से व्हाइट टाइगर निशुल्क भेजे गए थे महाराज मार्तंड ने सफेद बाघों की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए उस समय उपलब्ध सीमित संचार संसाधन से अमेरिका जापान ब्रिटेन जर्मनी चाइना ऑस्ट्रेलिया आदि बड़े राष्ट्रों से संपर्क किए और सफेद बाघ की नस्ल को वहां भेज कर रीवा ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष का नाम ऊंचा किया था।

कुश्ती के क्षेत्र में गामा पहलवान ने 32 वर्श की आयु मे विश्वविजेता का खिताब रीवा दरबार मे जीता लन्दन में जीता था। गामा ने विभिन्न कुश्ती स्पर्धाओ को जीतकर रूस्तमें हिन्द का खिताब हासिल किया था।

खेल प्रतिभाओ मे इस क्षेत्र मे कैप्टन बजरंगी प्रसाद ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये देश का सर्वोच्च खेल सम्मान अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है कैप्टन बजरगी ने थ्री एण्ड हाॅफ समर साल्ट लगाकर गोताखोरी का एशियन रिकार्ड भी स्थापित किया है।

अहमद शेरखान सन 1936 मे विश्वविजेता भारतीय हांकी टीम के सदस्य थे 1936 मे ओलम्पिक खेल योरोप के बर्लिन नाम गनर मे सम्पन्न हुये थे। जिसमे भारत को हांकी का स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था। इस तरह से रीवा अपने आप मे एक पूर्ण इकाई है। उसका अपना साहित्य है इतिहास है और अपनी कला एवं संस्कृति है जिसकी राष्ट्रके साहित्य इतिहास कला और संस्कृति की अमिट छाप है। प्रकृति का इसे वरदान है इसका पर्यावरण प्राकृतिक है जिस पर इसका अस्तित्व उन्नति और समृद्ध निर्भर रहा है।

शिल्पी प्लाजा का निर्माण होने से रीवा भी महानगरीय तर्ज पर आगे बढता जा रहा है शिल्पी प्लाजा प्रोजेक्ट को राज्य के शहरों के कायाकल्प के लिए माॅडल प्रोजेक्ट माना गया है चैराहे का आधुनिकरण, सडक निर्माण, बाईपास रोड, नगर का सुनयोजित विकास सौन्दर्यीकरण प्राकश व्यवस्था हार्कर कार्नर का निर्माण डायविंग पुल एवं पार्को का विकास हुआ है।

रीवा शहर मे चिकित्सा महाविद्यालय अभियांत्रिकी महाविद्यालय कृषि, महाविद्यालय आयुर्वेद महाविद्यालय सैनिक स्कूल केन्द्रीय विद्यालय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय गुरू गोलवर्कर महाविद्यालय कन्या महाविद्यालय विधि महाविद्यालय पशु चिकित्सा महाविद्यालय के साथ यहां विश्वविद्यालय होने के करण इसका निरंतर विस्तार हो रहा है। नई शिक्षा तकनीक विकसित होने के बाद से रीवा मे भी कई कम्प्यूटर कालेज एवं जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलाॅजी कालेज आर.आई.टी कालेज की स्थापना हो चुकी है इससे रीवा शहर शिक्षा के क्षेत्र मे अन्य शहरो से भी आगे है।

देवेंद्र द्विवेदी, रीवा

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