शहरीकरण के कारण सूखने के कगार पर भलस्वा झील

दिल्ली की भलस्वा झील कभी स्वच्छ पानी के लिए जानी जाती थी, लेकिन आधुनिकीकरण और शहरीकरण ने इस जलाशय को लील लिया है।

प्राकृतिक रूप से घोड़े के खुर के आकार की यह झील उत्तर-पश्चिम दिल्ली में स्थित है और पहले यह 58 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली थी। लेकिन आज यह 34 हेक्टेयर में सिमट गई है।

यह झील एक समय पेड़-पौधों, जलीय जीव-जंतुओं, जंगलों और मैदानों से समृद्ध थी, लेकिन आज यह कंक्रीट के जंगल के अतिक्रमण से सिकुड़ती जा रही है। अब इसके आसपास आवासीय कॉलोनियां ज्यादा हो गई हैं।

भलस्वा गांव में रहने वालों ने कहा कि झील का पानी एक समय इतना स्वच्छ था कि आप इसमें मछली को तैरते हुए देख सकते थे।

कई जलाशयों के पुनरुद्धार कार्य से जुड़े पर्यावरणविद रणवीर तंवर ने कहा, “भलस्वा झील पहले 58 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली थी, जो अब 34 हेक्टयर क्षेत्र में सिकुड़ गई है।”

बचपन से इस झील को देख रहे अशोक ने कहा, “पहले दूर से झील की तस्वीर खूबसूरत नजर आती थी, लेकिन अब यह नजदीकी डेयरी से आने वाले कूड़ा-कचरा से भरी पड़ी है।”

भलस्वा बोट क्लब के प्रभारी एन.एल. मीणा ने कहा, “नजदीक की डेयरियों का समूचा कचरा झील में बहाए जाने की वजह से झील सूख रही है। आवासीय इलाके और आसपास मौजूद फैक्टरियां समस्या को और भी बढ़ा रही हैं। यहां के जल में ऑक्सीजन नहीं है और यह इस कदर प्रदूषित है कि इसका रंग बदलता रहता है।”

उन्होंने कहा, “हमें यहां ऑफिस में बैठने में दिक्कत महसूस होती है।”

इस झील का विकास 1991-92 में बोटिंग एवं जलक्रीड़ा के उद्देश्य से किया गया था। प्रदूषण की वजह से जून 2015 से दिसंबर 2016 तक बोटिंग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

बोटिंग के लिए कितने लोग आते हैं? उन्होंने कहा कि प्रदूषण की वजह से अब कम ही लोग यहां आते हैं।

लोगों का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार की उपेक्षा की वजह से झील की ऐसी स्थिति हो गई है। सभी विभाग अपने ऊपर जिम्मेदारी न लेकर एक-दूसरे पर थोपते रहते हैं और प्रदूषण की समस्या जस की तस बरकरार है।

खास बात यह है कि भलस्वा लैंडफिल साइट (कचरा इकट्ठा करने का स्थल) इस झील के करीब ही है।

एक स्थानीय निवासी ने कहा, “यह झील दिल्ली सरकार के पर्यटन विभाग के तहत आती है। जबकि जमीन दिल्ली विकास प्राधिकरण के तहत है। स्थानीय सांसद ने भी इस झील को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए कुछ खास नहीं किया।”

त्योहारों के समय यहां भक्त लोग पूजा सामग्री से लेकर मूर्तियों तक का विसर्जन करते हैं। इससे भी झील की स्वच्छता प्रभावित होती है।

मीणा ने कहा, “प्रतिदिन तकरीबन एक टन कचरा डेयरी एवं आसपास के इलाकों से इस झील में गिरता है। इसे रोकना मुश्किल है, क्योंकि आसपास के सभी नाले यहीं आकर गिरते हैं।”

उन्होंने कहा कि लोकनिर्माण विभाग झील में कचरा जाने से रोकने के लिए काम कर रहा है।

उन्होंने कहा कि कुछ माह पहले एक निजी कंपनी ने यहां से पानी के नमूने लिए थे और जांच रिपोर्ट डीडीए को सौंपी गई है, ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके।

बोट क्लब के एक कर्मचारी ने कहा कि प्रतिवर्ष कॉलेज के कुछ छात्र किसी कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर यहां आते हैं और झील और आसपास के इलाके की सफाई करते हैं।

यह पूछे जाने पर कि खेल गतिविधियां यहां होती हैं? मीणा ने कहा कि करीब 20 युवा शाम में आते हैं और वाटर स्पोर्ट्स की कक्षाओं में शामिल होते हैं।

लोग चाहते हैं कि झील को पुराने स्वरूप में लाया जाए और सरकार इस तरफ ध्यान दे।

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *