शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए हावर्ड ग्रेजुएट ने किया डेटा का प्रयोग

हावर्ड की एक पोस्ट ग्रेजुएट ने एक सामाजिक उद्यम की शुरुआत की है, जो एक डेटा-संचालित पहल है। इसका लक्ष्य नीति निर्माताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों को शामिल कर ग्रामीण इलाकों में शासन को मजबूत करना है।

देश भर में विकास समाधान मुहैया कराने के लिए स्वनीति पहल ने एक फेलोशिप कार्यक्रम को डिजायन किया है, जो सांसदों को उनके संसदीय क्षेत्र के विश्लेषण और शोध (एसपीएआरसी) में मदद करता है।

इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले फेलो सांसद के साथ मिलकर कृषि, शिक्षा, आजीविका, नवीनीकृत ऊर्जा, सामाजिक कल्याण, पानी, स्वास्थ्य और पोषण जैसे क्षेत्रों में काम करते हैं।

संस्था ने सैकड़ों सरकारी कार्यक्रमों को चिन्हित किया है, जिनकी प्रगति की जानकारी मुश्किल है। क्योंकि इनके आंकड़ों को व्यवस्थित नहीं किया जाता है, जिसका नतीजा यह होता है कि इन योजनाओं के लिए आवंटित वित्त का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाता है और वह सरकारी खजाने में वापस लौट जाता है।

स्वनीति पहल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी ऋत्विक भट्टाचार्य ने ऑनलाइन वेबसाइट ‘द बेटर इंडिया’ से कहा, “स्वनीति पहल के मूल में सरकारी सेवाओं में सुधार के लिए सरकारी प्रणालियों के साथ मिलकर काम करना है।”

ऋत्विक ने भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की स्थितियों का नियमन) अधिनियम, 1996, और बीओसीडब्ल्यू कल्याण उपकर अधिनियम 1996 का हवाला दिया, जिसमें निर्माण उद्योग में लगे कामगारों को जीवन बीमा, स्वास्थ्य बीमा और बुनियादी आवास तक पहुंच उपलब्ध कराने का वादा किया गया है।

ऋत्विक ने कहा, “हालांकि, श्रम मंत्रालय के मुताबिक, इस कानून पारित होने के 22 सालों में सरकार कोष का केवल 35 फीसदी रकम ही खर्च कर पाई, जिसका नतीजा यह है कि करीब 28,000 करोड़ रुपये का प्रयोग ही नहीं हुआ। हम कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि निर्माण श्रमिकों को योजना का लाभ मिले?”

संस्था ने भारत में भ्रष्टाचार के जड़ की पहचान की है, जो कि शासन की कमजोर और बिखरी हुई व्यवस्था है। यह प्रणाली जिला और पंचायत स्तर पर विभिन्न सरकारी योजनाओं में किए गए धन के उपयोग पर नजर रखने में असमर्थ है।

इस मॉडल की सफलता का उल्लेख करते हुए ऋत्विक ने बताया कि उत्तराखंड के पिंडर घाटी में बेरोजगारी की समस्या थी, जहां सामुदायिक पार्क के नेटवर्क को बनाने में करीब 700 लोग शामिल हुए। इस परियोजना का बजट 70 लाख रुपये था।

संस्था ने हाल में ही डिजिटल प्लेटफार्म ‘जानो इंडिया’ लांच किया है, जिस पर जिला संसदीय क्षेत्र और संसद सदस्य के बारे में सभी तरह के आंकड़े एक जगह पर मिलेंगे।

इन आंकड़ों को 850 से अधिक स्त्रोतों से जुटाया गया है, जिसमें चुनाव आयोग, पशुधन की जनगणना, आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक), लोकसभा, स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा और एनएसएओ के आंकड़ें भी शामिल हैं।

इस प्लेटफार्म पर लोग अपने जिलों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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