एक तरफ जहां पूरी दुनिया में सेव टाइगर की मुहिम चल रही है, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी जी ने बाघों की संख्या पर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, ‘आज, हम बाघ की रक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं। सिर्फ घोषित बाघ जनगणना के परिणाम हर भारतीय को खुश करेंगे। 9 साल पहले सेंट पीटर्सबर्ग में यह निर्णय लिया गया था, कि बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य 2022 होगा। हमने इस लक्ष्य को 4 साल पहले पूरा कर लिया है।’
उन्होंने बताया कि, 2014 में भारत में प्रोटेक्टेड एरियाज की संख्या 692 थी जो 2019 में बढ़कर अब 860 से ज्यादा हो गई है। साथ ही कम्युनिटी रिज़र्व की संख्या भी साल 2014 के 43 से बढ़कर अब सौ से ज्यादा हो गई है।’
पीएम मोदी ने कहा कि, आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारत करीब 3 हज़ार टाइगर्स के साथ दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सुरक्षित Habitats में से एक है, लेकिन हमें सहअस्तित्व को भी स्वीकारना होगा और सहयात्रा के महत्व को भी समझना होगा। बीते पाँच वर्षों में जहां देश में Next generation Infrastructure के लिए तेजी से कार्य हुआ है, वहीं भारत में फारेस्ट कवर भी बढ़ रहा है। देश में प्रोटेक्टेड एरियाज की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
इसी परिदृश्य में भारत सहित पूरे विश्व को सफेद बाघ की सौगात देने का श्रेय मध्य प्रदेश के रीवा जिले को जाता है,
सफेद बॉघ रीवा मे जन्मे मोहन के वंशज है। यहां से पूरी दुनियॉ मे व्हाइट टाइगर चर्चित हुये। दुनिया मे पाये जाने वाले बॉघ से अलग.. सफेद बॉघ 9 फिट लम्बा, सफेद रंग, गुलाबी नाक, लम्बा जबडा, नुकीले दॉत। जी हॉ यही है सफेद बॉघो का जनक मोहन… मोहन की कहानी रीवा से शुरु होती है जो पूरी दुनियॉ मे मशहूर है। 1951 में सीधी के बगरी जंगल से महाराजा मार्तण्ड सिंह ने शिकार के दौरान 6 माह के शावक को पकडा और इसका नाम रखा मोहन। इस बॉघ को पकडकर गोविन्दगढ किला लाया गया और इसे यहॉ रखने के लिये बॉघ महल बनाया गया। नन्हे मोहन को महल मे रखने के पुख्ता इंतजाम थे।
गोविन्दगढ बॉघ महल मे नन्हा मोहन अकेलापन होने के चलते उदास रहता था, कभी सोज विचार के बाद महाराज ने बाघिन भी महल मे रखने का निर्णय लिया। मोहन और बेगम को महल मे छोड दिया गया इसके बाद मोहन ने जंगल की तरफ मोड कर नही देखा। मोहन की चर्चा देश-विदेशो मे फैल गयी और एक-एक करके सफेद बॉघ पूरी दुनियॉ मे पहुंच गये। मोहन प्रतिदिन 10 किलो बकरे का गोस्त, दूध, अंडे मोहन का प्रिय आहार था। लेकिन आश्चर्य यह था कि मोहन रविवार के दिन व्रत रखता था और फुटवाल उसका पसंदीदा खेल था। मोहन की अठखेलियॉ देखने के लिये दूर-दूर से सैलानी आते थे और बॉघ महल की बॉघो के देखने के लिये सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे।
तीन रानियॉ चैतीस सन्तानें..
जी हॉ रीवा की जमी पर मोहन की तीन रानियॉ बॉघ महल गोविन्दगढ मे थी और इनसे 34 सफेद बॉघ जन्में। जो आज पूरी दुनियॉ मे आकर्षण का केन्द्र है। 16 वर्षीय सफेद बॉघ मोहन की राधा, सुकेशी नाम की तीन रानियॉ थी, बेगम ने 14, राधा 7 और सुकेशी ने 13 सफेद बॉघो को जन्मा।
बाघों के खरीदी-बिक्री की शुरुआत:
1955 में पहली बार बॉघो के बेचने और क्रय करने की घटना हुई। कोलकत्ता के पी.एम.दास है 2 बॉघ और बाघिन को क्रय किया। इसके पूर्व बॉघो के चमडो की बिक्री होती थी यह नई घटना थी इसलिये चर्चा का विषय बन गयी। बॉघ देखने के लिये राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरु रीवा आये। इन्हे यहॉ महाराज ने एक-एक बॉघ भेंट किये। इसके बाद देश-विदेशो मे बॉघ भेजने का दौर शुरु हो गया। गोविन्दगढ बॉघ महल मे मोहन का वंशज विराट आखिरी बॉघ था। इसकी मौत के बाद महाराज के बॉघो से मोह भंग हो गया, बॉघो को यहा से बाहर भेज दिया गया। जीवित बॉघो की ताबडतोड खरीदी-बिक्री तो रीवा रियासत मे हुई ही.. मरने वाले सफेद बॉघो को भी लकडी की चौखट मे जडवाकर ब्रिटेन की समाग्री महारानी विक्टोरिया को भेंट किया गया। यह किंग्सटन प्राकृतिक संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है। रीवा रियासत मे बॉघो की सवारी निकलती थी, बॉघ महाराज की बॉघ्घी खीचते थे।
बाघ वापसी में राजेंद्र शुक्ल का रहा अहम योगदान:
सफेद बॉघो की जन्म स्थली मे बॉघ वापस लेने के प्रयास किये तो नतीजा आपके सामने है। दुनियॉ का सरताज है सफेद बॉघ मुकुदंपुर टाइगर सफारी में लौट आये। रीवा रियासत के महाराजा पुष्पराज सिह ने गोविन्दगढ मे बॉघ की वापसी के लिये अथक प्रयास किये। इसके अलावा स्थानीय विधायक राजेन्द्र शुक्ल ने बॉघ की वापसी के लिये विशेष योजना बनाई। जैसा राजेन्द्र शुक्ला ना चाहा था ठीक वैसा ही हुआ वन विभाग ने मुकुदपुर के जंगलों को सफारी के लिए चयन किया और सफारी बनकर तैयार हुई। यहां बॉघों के साथ ही अन्य जंगली जीवों को रखा गया है। यह दुनिया की इकलौती व्हाइट टाइगर सफारी का गौरव हासिल करती है।
सफेद बॉघ देखने की ललक मे सात समंदर पार से सैलानी रीवा पहुंचते है इन्हे महज जर्जर बॉघ महल देखने को और बॉघो की कहानियॉ सुनने को मिलती है। गोविन्दगढ का बॉघ महल.. ईमारत भले ही जर्जर हो गयी हो लेकिन इसी जगह सफेद बॉघो ने इतिहास रचा। जंगल से मोहन को पकड कर इस महल मे रखा गया। यहॉ बॉघो की परवरिश होती और हर रोज हजारो दर्शक बॉघो को इस जगह देखने आते थे। जरूरत है बाघो के संरक्षण की ताकि इस खूबसूरत प्राणी की दहाड़ जंगलो में बनी रहे।
-देवेंद्र द्विवेदी, रीवा