सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या फैसले को लेकर 5 और पुनर्विचार याचिकाएं दायर


सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को नौ नवंबर को अयोध्या मामले में दिए गए फैसले के पुनर्विचार को लेकर पांच याचिकाएं दायर की गईं। कोर्ट ने अयोध्या मामले में विवादास्पद स्थल को हिंदू पक्ष को राम मंदिर के निर्माण के लिए देने का फैसला सुनाया था। इन पांचों याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) का समर्थन प्राप्त है।

इन याचिकाओं को वरिष्ठ वकील राजीव धवन व जफरयाब जिलानी के निरीक्षण में मुफ्ती हसबुल्ला, मौलाना महफूजुर रहमान, मिस्बाहुद्दीन, मोहम्मद उमर और हाजी महबूब द्वारा दायर किया गया है।

एआईएमपीएलबी ने एक बयान में कहा कि वह फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का समर्थन करेगा और वरिष्ठ वकील ने मामले की प्रकृति को देखते हुए मसौदा तैयार किया है।

जिलानी ने मीडिया कर्मियों से कहा कि अगर पुनर्विचार याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई होगी तो धवन कोर्ट के समक्ष मामले (एआईएमपीएलबी समर्थित) को प्रस्तुत करेंगे।

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन राम लला को दे दी। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र को यूपी सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ का भूखंड आवंटित करने का भी निर्देश दिया।

पुनर्विचार याचिका में कहा गया है, “1857 के बाद से मूर्तियां बाहरी प्रांगण में थीं। यह आपराधिक अतिक्रमण के जरिए 22-23 दिसंबर 1949 को यहां जबरन रखे जाने के अलावा कभी अंदरूनी भाग में नहीं थीं। अदालत ने स्वीकार किया कि मूर्तियों को अवैध रूप से आंतरिक प्रांगण में रखा गया था और फिर भी मुस्लिम पक्ष के खिलाफ आदेश दिया गया।”

पुनर्विचार याचिका में कहा गया, “यह स्वीकार करते हुए कि स्वामित्व के उद्देश्य से अंग्रेजों द्वारा बनाई गई रेलिंग असंगत है और यह मान लेना पूरी तरह से गलत है कि हिंदू कब्जे या स्वामित्व के लिए दावा कर सकते हैं।”

पुनर्विचार याचिका ने मामले में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) रिपोर्ट की सीमा को भी उजागर किया।

याचिका में कहा गया, “एएसआई का निष्कर्ष था कि यह साबित नहीं किया जा सकता है कि एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई। संभावनाओं के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि 1528-1856 के बीच मुसलमान वहां नमाज नहीं पढ़ते थे, क्योंकि इस दौरान यह स्थल मुगलों व बाद में नवाबों के शासन के अधीन था।”

पहली पुनर्विचार याचिका 2 दिसंबर को मौलाना सैयद अशद रशीदी द्वारा दायर की गई। रशीदी मूल वादी एम सिद्दीक और उत्तर प्रदेश जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं।

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