स्पेन: कॉप-25 में दिखा ग्रेटा का गुस्सा, गुटेरेश की सलाह और भारत की चिंता !

स्पेन दो हफ्ते चली जलवायु वार्ता के बाद शुक्रवार को कॉप-25 की ओर से एक मसौदा जारी किया गया। मसौदे में कार्बन बाजार, जलवायु क्षतिपूर्ति की भरपाई, हरित कोष आदि मुद्दों को शामिल किया गया है। खास बात यह है कि दो मुद्दों कार्बन बाजार और जलवायु क्षतिपूर्ति को लेकर भारत की चिंताओं को भी मसौदे में जगह मिली है। इन दो मुद्दों पर ही प्रगति दिख रही है। कॉप-25 में इस मसौदे पर सभी देशों के वार्ताकारों के बीच चर्चा के बाद जिन मुद्दों पर सहमति बनती है, उन पर कॉप-25 अध्यक्ष की ओर से बयान जारी किया जाता है।

हालांकि कॉप-25 जलवायु वार्ता में भारत ने विकसित देशों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वे इस खतरे से निपटने के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाएं।  इस मौके पर जावड़ेकर ने जलवायु खतरों से निपटने के लिए भारत के प्रयासों का ब्यौरा भी रखा। उन्होंने कहा कि भारत को 2030 तक उत्सर्जन में 35 फीसदी की कमी करनी है, जबकि 21 फीसदी कमी वह हासिल कर चुका है। जावड़ेकर ने सभी देशों से पेरिस समझौते का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का भी आह्वान किया।

स्पेन के मैड्रिड में आयोजित  कॉप-25 में पहुंचे केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि विकसित देश एक खरब डॉलर के हरित कोष समेत अपने सभी लक्ष्यों को पूरा करें।जावड़ेकर ने उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए भारत के हितों से जुड़े पांच मुद्दों को भी जोर शोर से उठाया, जिनमें विकसित देश रोड़ा बने हुए हैं।

उन्होंने कहा कि विकसित देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल के लक्ष्य पूरे नहीं किए हैं। अब एक साल बाद पेरिस समझौता शुरू हो जाएगा। ऐसे में विकसित देशों को तीन साल का समय देकर उन्हें क्योटो के लक्ष्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी दी जाए। इसके तहत उत्सर्जन में 25-40 फीसदी तक की कमी लानी है।

दूसरा, विकसित देशों ने 10 साल में एक खरब डॉलर के हरित कोष का वादा किया था, लेकिन इसकी दो फीसदी राशि ही दी। वे इस वादे को पूरा करें ताकि गरीब और विकासशील देश इस खतरे से निपटने के लिए कमर कसें। उन्होंने यह भी कहा कि निजी क्षेत्र की मदद को इसमें न जोड़ा जाए। तीसरे में, जावड़ेकर ने कहा कि विकसित देश हरित तकनीकें उपलब्ध कराएं। हम आपदाओं का सामना कर रहे हैं जिससे निपटने के लिए तकनीकें मांग रहे हैं, लाभ कमाने के लिए नहीं। उन्होंने इसके लिए संयुक्त शोध की जरूरत भी बताई।

चौथा मुद्दा जावड़ेकर ने कार्बन बाजार का उठाया। उन्होंने कहा कि क्योटो प्रोटोकोल में संचालित कार्बन बाजार (सीडीएम) को पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6 में जारी रखा जाए ताकि जिन कंपनियों ने कार्बन ट्रेडिंग में निवेश कर रखा है, उन्हें इसका फायदा आगे भी मिले। बता दें कि विकसित देश क्योटो के प्रावधानों के तहत आगे कार्बन कारोबार को जारी रखने के पक्ष में नहीं हैं। वे पेरिस समझौते में नए मैकेनिज्म पर जोर दे रहे हैं।

जावड़ेकर ने पांचवां मुद्दा जलवायु क्षति का उठाया था। उन्होंने कहा कि वारसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज्म के तहत जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप होने वाली क्षति के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान किया जाए। दरअसल, इस मामले पर भी विकसित देश उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। उन्हें डर है कि इसके लिए भी वित्तीय प्रबंधन की जिम्मेदारी उनके ऊपर डाली जा सकती है।

उधर यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश  ने भी स्पेन की राजधानी मैड्रिड में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन कॉप-25 के उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि “मैं ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में कारोबारी नेताओं से मुलाक़ात कर रहा हूँ जो ऐसी शिकायतें करते हैं कि जैसा वो करना चाहते हैं, सरकारें उन्हें  करने का मौक़ा नहीं देतीं , ऐसा इसलिए क्योंकि अब भी नौकरशाही, प्रशासनिक, टैक्स नियम और अन्य ढाँचे इस तरह से बनाए जाते और काम करते हैं कि पूरा नियंत्रण सरकारों के हाथों में रहता है।” संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने तमाम व्यवसायों और सिविल सोसायटी का आहवान किया है कि वो सरकारों पर ऐसी बेहतर नीतियाँ बनाने के लिए दबाव डालें जिनके ज़रिए जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करने में निजी क्षेत्र के प्रयासों को भी सहारा दिया जा सके।

यूएन प्रमुख का कहना था कि दुनिया भर में करोड़ों लोग, ख़ासतौर पर युवजन ये समझते हैं कि जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों को सीमित करने के लिए अभी बहुत ज़्यादा कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है। “इसीलिए वो तमाम क्षेत्रों के नेताओं का आहवान कर रहे हैं कि जलवायु आपदा का सामना करने के लिए असाधारण रूप से और भी ज़्यादा कार्रवाई करें. इतिहास में सही तरफ़ रहने के प्रयासों में हम सभी अपना अंतिम मौक़ा भी गँवा देने के बहुत नज़दीक पहुँच चुपके हैं।”

हालांकि, विकसित देशों को आड़े हाथों लेने में सिर्फ भारत या संयुक्त राष्ट्र ही नहीं था। दुनिया भर से आए करीब 15 यूथ एक्टिविस्ट ( जलवायु पर काम कर रहे युवा कार्यकर्ता) जैसे “ग्रेटा थनबर्ग” ने भी विकसित देशों को खरी खोटी सुनाई।  वही ग्रेटा थनबर्ग जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में एक भावुक भाषण देते हुए ग़ुस्से में दुनिया भर के नेताओं से पूछा था, “हाउ डेयर यू?…आपकी हिम्मत कैसे हुई?”

मैड्रिड में कॉप-25 जलवायु वार्ता में  ग्रेटा थनबर्ग का युवाओं से आह्वान करते हुए कहा कि धरती को सुरक्षित रखने के लिए एक आंदोलन की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को लेकर उन्‍होंने पूरी दुनिया के नेताओं को जिस तरह से लताड़ा था उसको इस मुहिम से जुड़े कार्यकर्ताओं ने काफी सराहा भी था। जलवायु परिवर्तन पर दिए भाषण के दौरान वह बेहद गुस्‍से में दिखाई दी थीं। उनका कहना था कि नेताओं की बदौलत जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुहिम चलाने वाले कार्यकर्ता विफल हो रहे हैं। इससे पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है। उनके मुताबिक युवाओं की निगाहें विश्‍व के नेताओं पर लगी हैं, ऐसे में यदि उन्‍होंने लोगों को निराश किया तो वह उन्‍हें कभी माफ नहीं करेंगे।

ग्रेटा ने स्पष्ट करते हुए कहा कि ये बहुत ज़रूरी है कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए क्योंकि हम देख रहे हैं कि सिर्फ़ एक डिग्री की बढ़ोत्तरी पर भी लोग जलवायु आपदा संबंधी घटनाओं में मारे जा रहे हैं। ग्रेटा थनबर्ग ने कहा, “क्योंकि एकीकृत विज्ञान इसी के लिए आहवान कर रहा है, जलवायु को और ज़्यादा अस्थिर ना बनाया जाए ताकि हम ऐसे घटनाक्रमों को होने से पहले ही रोक दें जिन्हें हो जाने के बाद बदलकर पहले की स्थिति में नहीं लाया जा सकेगा। इनमें हिमनदों और पोलर हिम के पिघलने जैसी घटनाएँ शामिल हैं. एक डिग्री का आंशिक हिस्सा भी बहुत अहम है।”

ग्रेटा समेत 15 कार्यकर्ताओं ने संयुक्‍त राष्‍ट्र में पांच देशों के खिलाफ शिकायत की है। इसमें जर्मनी, ब्राजील,  फ्रांस, अर्जेंटीना और तुर्की शामिल हैं।  मालूम हो कि स्वीडन की जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग को इस साल ‘टाइम्स पर्सन ऑफ़ द इयर, 2019’ का ख़िताब भी मिला है।

– म. शाहिद सिद्दीकी

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