CAA-NRC के खिलाफ शाहीन बाग में आधी रात का आंदोलन, डटी हैं महिलाएं

कश्मीर और हिमाचल से आने वाली बर्फीली हवाओं ने भले ही दिल्ली की फिजा को अपनी आगोश में ले लिया हो, शीत लहर के कारण दिल्ली की सड़कें सुनसान क्यों न हों, दिल्ली का शाहीन बाग़ बिल्कुल गर्म है। जी, हां, हड्डी गला देने वाली ठण्ड, यानि सर्दी का आलम कुछ ऐसा है कि जैसे तैसे करके आदमी बाहर तो निकल रहा है मगर जैसे ही शाम होती है लोग अपने अपने घरों में लौट जाते हैं। बात तापमान की हो तो इन दिनों दिल्ली का तापमान शाम होते ही 3 से 4 डिग्री तक चला जा रहा है। सवाल होगा कि जाड़े के अलावा ठिठुरन और गलन की मार सहती दिल्ली की बातें क्यों? जवाब है CAA protest. दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में नागरिकता संशोधिन कानून (CAA) के विरोध में महिलाएं 16 दिनों से लगातर धरने पर हैं।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ (Protest Against CAA) देश की एक बड़ी आबादी सड़कों पर है। तमाम ऐसे मामले हमारे आ चुके हैं जिसमें कानून के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने ‘कानून’ अपने हाथ में लिया। आगजनी हुई, पत्थरबाजी को अंजाम दिया गया, उपद्रव हुआ और शांति को प्रभावित किया गया, टीवी अख़बारों और इंटरनेट पर हम तस्वीरें वो भी देख चुके हैं जब बेकाबू हालात को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करते हुए बल का सहारा लेना पड़ा।

लेकिन, दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाके में ठंड ठिठुरन और गलन की परवाह किये बगैर सैकड़ों महिलाएं बीच सड़क पर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं। बता दें कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में 15 दिसंबर को जामिया नगर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद से शाहीन बाग इलाके में विरोध-प्रदर्शन चल रहा है। पिछले 16 दिनों से जारी इस ‘शाहीन बाग रिजिस्ट में रोज सैकड़ों महिलाएं ठंड की परवाह किये बगैर परिवार और घरेलू कामकाज के बीच सामंजस्य बैठाते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही हैं।

CAA के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग जैसी एक गुमनाम जगह पर चल रहा ये प्रोटेस्ट कई मायनों में दिलचस्प है। यहां आ रही महिलाओं का तरीका शांत है, वो उग्र नहीं हैं, महिलाएं किसी पर पत्थर नहीं मार रहीं हैं, वो बसों को तो बिलकुल भी आग के हवाले नहीं कर रही हैं, इनके हाथ में लाठी डंडे और तमंचे भी नहीं हैं। जमीन पर बैठकर प्रदर्शन करने वाली इन महिलाओं और लड़कियों के हाथों में प्लेकार्ड है। ये पोस्टर और पैम्पलेट लेकर प्रदर्शन कर रही हैं। अन्ना आंदोलन के बाद ये पहला मौका है जब हम इस तरफ का कोई ऐसा प्रोटेस्ट देख रहे हैं. ये एक ऐसा प्रोटेस्ट है जो शांतिपूर्ण हैं और जिसमें प्रदर्शनकारी किसी और को नहीं बल्कि अपनी मांगों के लिए खुद को तकलीफ पहुंचा रहे हैं।

हालांकि, बीच सड़क पर बैठे होने की वजह से शाहीन बाग से नोएडा, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा जाने वाले रास्तों को दिल्ली पुलिस ने बंद किया हुआ है। इसपर स्थानीय निवासी कहते हैं, हमें दुख है कि लोगों को परेशानी हो रही है, मगर उन लोगों को हमारी परेशानी समझनी चाहिए कि हम भी सड़क पर बैठे हैं। सिर्फ उस भेदभाव के खिलाफ, जिसकी इजाजत संविधान नहीं देता। मजहब के आधार पर बंटवारे के खिलाफ। लेकिन हम इस बात का पूरा ख्याल रख रहे हैं कि किसी एंबुलेस का रास्ता रुकने न पाए, उसके लिए रास्ता बना रखा है।

वहीं लगातार धरने में बैठी महिलाएं कहती हैं, – “हमारी आवाज पीएम मोदी जी नहीं सुन रहे हैं। मीडिया सुन रहा है। फेसबुक सुन रहा है। इंशाल्लाह पीएम भी जरूर सुनेंगे, इस बात की पूरी उम्मीद है। हम बैठे रहेंगे, इस संविधान के लिए अंग्रेजों के खिलाफ जंग में कुर्बानियां दी गईं, हम तो सिर्फ दिसंबर की ठंड बर्दाश्त कर रहे हैं।”

सीएए के वापस कराने की उम्मीद में मंच से गीत गाए जा रहे हैं, जनता तेरे सपनों को मोदी ले गए… महिलाएं जमीन पर बैठी हैं। रजाई-गद्दे पड़े हैं। ठंड से बचने के लिए पेट्रोमैक्स भी जल रहे हैं। किसी के हाथ में तिरंगा है, तो किसी के हाथ में भीम राव आंबेडकर की तस्वीर। जो चीख-चीख कर कह रही है कि –

 ‘ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं, कि जल्द हम कोई सख्त इंकलाब देखेंगे’

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