COVID-19: अफ्रीकावासियों के पास मन को मजबूत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं !

पूरी दुनिया में जहां कोरोना वायरस के कारण मरीजों और मौत के आंकड़ों में दिनोंदिन तेजी आ रही है, वहीं अफ्रीका महाद्वीप भी अब इससे अछूता नहीं रहा। जॉन हॉप्किंस यूनिवर्सिटी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में कुल ३१ लाख १० हजार २१९ लोग कोरोना संक्रमण के शिकार हो चुके हैं, जबकि कोरोना संक्रमण की  वजह से २ लाख १६ हजार ८०८ लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं अफ्रीका में कोरोना से अब तक लगभग १४६९ लोगों की जान जा चुकी है और ३३ हजार ५६६ लोग संक्रमित हैं। हालांकि, ये मामले अमेरिका और यूरोप के इलाकों से कम हैं लेकिन डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका क्षेत्र के निदेशक मत्सीदिसो मोइती की मानें तो दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, आइवरी कोस्ट, कैमरून और घाना में राजधानी शहरों से दूरदराज के इलाकों तक तेजी से फैल रहा है। पिछले दिनों विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (World Health Organization यानी WHO) ने आगाह किया था कि अफ्रीका कोरोना वायरस महामारी का अगला केंद्र बन सकता है क्योंकि पिछले हफ्ते मामलों में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है।  इम्पेरियल कॉलेज लंदन के मॉडल के आधार पर की गई गणना के हिसाब से संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस महाद्वीप पर यदि सामाजिक दूरी का पालन अच्छी तरह किया जाए और हालात ठीक भी रहते हैं तो १२.२ करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमण के शिकार हो सकते हैं। विशेषज्ञों ने चेताया है कि अफ्रीका की कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली के लिए यह बेहद हाहाकारी होगा। संयुक्‍त राष्‍ट्र की यह रिपोर्ट बेहद डराने वाली है।

समाचार एजेंसी एपी ने भी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि, अभी सामान्य स्थिति रही तो तीन लाख लोगों की मौत हो सकती है लेकिन अगर हालात बेहद खराब हुए और इस जानलेवा वायरस को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया तो अफ्रीका में ३३ लाख लोगों की जान जा सकती है। कई अफ्रीकी देशों ख़ास तौर पर सहारा क्षेत्र में कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाओं को देखते हुए कोरोना वायरस फैलने की हालत में यूरोप या एशिया के मुक़ाबले ज़्यादा लोगों की जान जा सकती है। अफ्रीकी देशों का स्वास्थ्य सिस्टम ज़्यादा मरीज़ों की सघन देखभाल नहीं कर पाएगा। साथ ही वेंटिलेटर की भी काफ़ी कमी है। आलम यह  है कि १० देशों में एक भी वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं है, जबकि ४१ देशों के पास सिर्फ २००० के आसपास वेंटिलेटर हैं। गिनी में हर छठे दिन कोरोना संक्रमण के मामले दोगुने हो रहे हैं, बुर्किना फासो में दो करोड़ की अबादी पर महज 11 वेंटिलेटर हैं। इसके विपरीत अगर अमेरिका पर नजर डालें तो उसके पास १,७०,००० वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। 

ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि विशेषज्ञ अफ्रीकी देशों की स्थितियों को लेकर चिंतित हैं। वे आशंकित हैं कि जिन देशों के पास मास्क, ऑक्सीजन और यहां तक कि साबुन-पानी जैसी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं, वहां अगर कोरोना महामारी फैली तो क्या होगा। इसलिए, जरूरी है कि इन देशों में कोरोना संक्रमण को फैलने ही न दिया जाए। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, साल २०१५ में सिर्फ १५ फीसदी उप सहारा अफ्रीकियों के पास हाथ धोने की सुविधा थी। साल २०१७ में लाइबेरिया में तो ९७ फीसदी घरों में साफ पानी और साबुन उपलब्ध ही नहीं था। शोध समूह सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट में वैश्विक स्वास्थ्य नीति के निदेशक कैलिप्सो चालकिडो का कहना है कि यहां जिन चीजों की जरूरत है वे न्यूनतम हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ , साल २०१५ में सिर्फ १५ फीसद उप सहारा अफ्रीकियों के पास हाथ धोने की सुविधा थी। साल २०१७ में लाइबेरिया में तो ९७ फीसद घरों में साफ पानी और साबुन उपलब्ध ही नहीं था। शोध समूह सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट में वैश्विक स्वास्थ्य नीति के निदेशक कैलिप्सो चालकिडो का कहना है कि यहां जिन चीजों की जरूरत है वे न्यूनतम हैं। स्वास्थ्य संसाधनविहीन कई देश अपनी जनता को बचाने के लिए कफ्र्यू व यातायात प्रतिबंधों का सहारा ले रहे हैं। अच्छी बात यह है कि ये प्रतिबंध शुरुआती दौर में लागू कर दिए गए थे।

१.१० करोड़ आबादी वाले अफ्रीकी देश दक्षिण सूडान में उपराष्ट्रपति तो पांच हैं, लेकिन वहां वेंटिलेटर की उपलब्धता सिर्फ चार है। इसी प्रकार मध्य अफ्रीकी गणराज्य के ५० लाख लोगों के लिए सिर्फ तीन वेंटिलेटर हैं। लगभग इसी आकार के देश लाइबेरिया में चालू हालत में छह वेंटिलेटर तो हैं, लेकिन उनमें से एक का इस्तेमाल अमेरिकी दूतावास करता है।अभी हाल ही में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ( WHO) ने आगाह किया था कि अफ्रीका कोरोना वायरस महामारी का अगला केंद्र बन सकता है। डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका क्षेत्र के निदेशक मत्सीदिसो मोइती की मानें तो दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, आइवरी कोस्ट, कैमरून और घाना में राजधानी शहरों से दूरदराज के इलाकों तक तेजी से फैल रहा है। पूरे अफ्रीका में ये बढ़ोतरी ४० फीसदी है। ताजा अपडेट के मुताबिक , मिस्र में २६०, द.अफ्रीका में २०३, नाइजीरिया में १९५, मोरक्को में १३२, घाना में १२१, सेनेगल में ८७, गिनिया में ७७, सुडान में ४३, , जाम्बिया में ६  औऱ केन्या में ११ कोरोना के नए मामले दर्ज किए गए हैं। जबिक नाइजीरिया में अबतक कोरोना से ४० मौत, मिस्र में २२ मौत, द. अफ्रीका में ९३ मौत, घाना में १६ मौत और केन्या में १४ लोगों की मौत हो चुकी है। 

हालाँकि अफ्रीका के कई देशों में कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने की तैयारी ज़ोर शोर से चल रही है। केन्या अपने लोबरेटोरी की मदद से कोरोनोवायरस के खिलाफ लड़ाई की तैयारियों में जुट चुका है।

राजधानी नैरोबी के केमरी मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में, शोधकर्ता नए उपकरणों के साथ वायरस को ट्रैक कर रहे हैं। वो एक ऐसी मशीन भी बनाने में जुटे हैं जिससे सैंपल द्वारा हर दिन क़रीब हज़ारों लोगों के टेस्ट किए जा सकेंगे। 

केमरी मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिसर्च ऑफ़िसर विलियम ओटेनियो ने कहा, कि हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि टेस्ट रिपोर्ट की अवधि चौबीस घंटे के भीतर हो। हमारे द्वारा इस्तेमाल की की जाने वाली मेडिकल उपकरण की ख़ासियत ये है कि इससे आठ घंटे में ९६० सैंपल जाँच किए जा सकते हैं।” उधर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर और मॉल्यूकिलर वायरोलॉजिस्ट लेयटन ओंयांगो ने कहा कि,  “फ़िलहाल हम वेस्टर्न केन्या से लेकर साउथ रिफ़्ट के कुछ इलाक़े तक के मरीज़ों को हम सेवा दे रहे हैं। अबतक इन इलाक़ों के क़रीब ९०० लोगों के सैंपल जाँच कर उनके रिपोर्ट जारी किए जा चुके हैं।”

केन्या को उम्मीद है कि आगामी जून तक २ लाख ५० हज़ार टेस्ट कर सकेगा। जबकि इथोपिया ने अबतक १० हज़ार टेस्ट किए हैं, तो दूसरी तरफ़ दक्षिण अफ़्रीका हर दिन १० हज़ार सैंपल टेस्ट कर रहा है। कोरोना संक्रमण पर क़ाबू पाने के लिए अफ्रीकी देश सैंपल टेस्ट के अलावा लॉकडाउन का सहारा ले रहे हैं। डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कॉन्गो ने जहां कासुमबालेसा और लुबुम्बाशी शहर को पूरी तरह लॉक किया है तो वहीं, नाइजीरिया और घाना ने भी अपने शहर अबुजा, लागों,ओगन और अक्कारा को पूर्णतः लॉकडाउन कर दिया है। 

तमाम कोशिशों के बावजूद किसी भी देश के लिए कोरोना वायरस से लड़ाई आसान नहीं है। ख़ास कर के बेहद लचर स्वास्थ्य सुविधाओं और विषमताओं के बीच फँसे बेबस अफ्रीकावासियों के पास कोरोना वायरस से लड़ाई के लिए मन को मजबूत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

                                                                                                                                                            – डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी.                                                                                                                                          

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