COVID-19 : दिल्ली और मुंबई के आंकड़े क्या बताते हैं

दिल्ली और मुंबई दोनों में ही टेस्ट की संख्या की तुलना में संक्रमित लोगों की संख्या ज़्यादा है। पिछले दो हफ़्तों से इसका आंकड़ा 25 से 30 फ़ीसदी के बीच घूम रहा है। इसका मतलब है कि दोनों जगह टेस्टिंग तेज़ करने की ज़रूरत है।

एक असफल लॉकडाउन और कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बाद मोदी सरकार ने आपदा प्रबंधन कानून के तहत आपातकाल घोषित कर दिया था। लेकिन अब सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।  हम मुंबई, दिल्ली और चेन्नई में कोरोना के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देख रहे हैं।

इन तीनों शहरों की कोरोना के नए मामलों में क़रीब 60 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार और नगर पालिकाओं/पंचायतों के बीच एक समन्वयकारी प्रक्रिया अपनाने के बजाए हमने देखा कि हर राज्य और शहर अपनी नीतियों पर काम कर रहा है, वहीं केंद्र सरकार अपनी जवाबदेही से पूरी तरह मुंह मोड़ चुकी है।

दुनियाभर में एक करोड़ के आसपास लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, WHO पहले ही अमेरिका, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में कोरोना फैलने के साथ ही महामारी के और तेजी से बढ़ने की चेतावनी दे चुका है।

यूरोपीय देशों में कोरोना का वक्र सपाट होता हुआ दिखाई दे रहा है, मतलब सामने आने वाले नए मामलों में कमी आई है। अमेरिका अब भी संक्रमण के मामलों और इससे जान गंवाने वालों के आंकड़ों में पहले स्थान पर चल रहा है। इसके ब्राजील, रूस और भारत का नंबर है। नए संक्रमित मामलों की संख्या के लिहाज़ से देखें तो ब्राजील, अमेरिका और भारत में सबसे ज़्यादा तेजी दिखाई दे रही है।

साफ़ है कि महामारी मौसमी नहीं है। बढ़ते तापमान का वायरस के फैलाव पर बहुत ज़्यादा असर नहीं हुआ है।
लोगों में SARS-CoV-2 का फैलाव

कोविड-19 के फैलाव पर प्रकाशित हालिया पेपर्स में संक्रमण फैलने का सबसे अहम माध्यम छोटी बूंदें और ऐरोसॉल हैं। इंसान से निकलने वाली यह बूंदें बड़ी होती हैं और लंबे वक्त तक हवा में मौजूद होती हैं। यह ठोस सतह पर आकर जम जाती हैं।

हम कितनी मात्रा में वायरस को ग्रहण करते हैं, यह भी अहम है। इसलिए अगर हम संक्रमित व्यक्ति के साथ एक तय स्थान पर रहते हैं, तो हमारे संक्रमित होने का ख़तरा ज़्यादा होता है, क्योंकि हम बड़ी संख्या में वायरस को ले रहे होते हैं। इसलिए कम जगह में बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा होने पर लगाई गई रोक बीमारी की रोकथाम में अहम है।

अगर हम उन बड़ी घटनाओं पर नज़र डालें, जिनमें बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए, तो वे सभी घटनाएं बड़ी और बंद जगह पर हुई हैं। हमारा प्रतिरोधक ढांचा किसी गुमनाम संक्रमण से भी जूझ सकता है, बशर्ते बैक्ट्रिया या वायरस बड़ी मात्रा में न हो।  अगर इसकी मात्रा ज़्यादा होती है तो प्रतिरोधक क्षमता जवाब दे जाती है।

इसलिए हमें वैक्सीन की जरूरत होती है, ताकि हमारा रोगप्रतिरोधक तंत्र संक्रमण फैलाने वाले तत्व की पहले से ही पहचान कर सके और इसके हमले का बेहतर ढंग से तेजी के साथ जवाब दे सके।
एयरोसॉल कोरोना वायरस के फैलाव में अहम किरदार अदा करता है, इसलिए बूढ़े लोगों के अस्पताल संक्रमण का बड़ा केंद्र बनकर उभरे हैं।

महामारी के दौर में अस्पताल बेहद अहम होते हैं,लेकिन इनमें कोरोना के मरीज़ों और ग़ैर कोरोना मरीज़ों का एयर कंडीशनिंग सिस्टम और वेंटिलेशन सिस्टम अलग-अलग करना बेहद जरूरी है। साथ में मेडिकल और दूसरे स्टॉफ के लिए पीपीई किट भी जरूरी हैं।

अब जब कोरोना के हवा से फैलने की बात को बड़े पैमाने पर बल मिलने लगा है, तब SARS-CoV-1 और एविएन फ्लू संक्रमण के बाद पूर्वी एशिया द्वारा अपनाए गए मास्क की बढ़ती हुई जरूरत स्वाभाविक ही है।

अमेरिका में खुली बंदूक रखना और मास्क ना लगाना श्वेत अधिवाद की दबंग संस्कृति का हिस्सा है, वहीं यूरोप में समस्या इस्लाम से घृणा पर आधारित परदा विरोधी कैंपेन की है।
हवा के रास्ते से संक्रमण फैलने और बंद स्थानों की अहमियत से हमें शहरी इलाकों में महामारी के बड़े पैमाने पर फैलने की वज़ह पता चलती है।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्लेग से लेकर इंफ्लूएंजा तक, सभी महामारियों ने शहरी इलाकों में ज़्यादा तबाही मचाई है। लॉकडाउन हटाते वक़्त बड़ी संख्या में लोगों के इकट्ठा न होने देने की बात को भी ध्यान में रखना होगा, ऐसा खई राज्यों और शहरों में सामुदायिक फैलाव के चलते और भी अहम हो जाता है।

-शहरी क्षेत्र- महामारियों के केंद्र
जैसा हमने चीन, यूरोप और अमेरिका में देखा, शहर महामारी के केंद्र बनकर उभरते हैं। भारत में भी दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में नए संक्रमण के अकेले 40 फ़ीसदी मामले हैं। जहां मुंबई में एक तरफ आंकड़ों में स्थिरता आ गई है, वहीं दिल्ली में तेज उछाल आ रहा है।

अगर हम दिल्ली और मुंबई की सही तस्वीर देखना चाहते हैं, तो हमें इन दोनों शहरों के नगरीय विस्तार- नोएडा,गुड़गांव और थाणे को भी शामिल करना होगा। इन इलाकों में भी कोरोना संक्रमितों के आंकड़ों में उछाल आ रहा है। गुड़गांव में तो बहुत सारे मामलों को छुपाया भी गया है। वहां काफ़ी सीमित टेस्टिंग की गई है।

पर्याप्त संख्या में टेस्टिंग ना करने का रास्ता गुजरात ने अपनाया था,  जिसका खुलासा वहां बड़ी संख्या में हुई मौंतों से हुआ। तेलंगाना ने भी लंबे वक्त तक उसी रणनीति को अपनाया। साथ में अपने टेस्ट के आंकड़ों को भी जारी नहीं किया।

तेलंगाना वह राज्य है, जहां उतने ही संक्रमित किसी दूसरे राज्य की तुलना में बहुत कम टेस्टिंग हुई है।  अब जब तेलंगाना में टेस्टिंग बढ़ी है, तो संक्रमित लोगों के आंकड़े में भी उछाल आया है। अब तेलंगाना वह राज्य है, जहां सबसे ज़्यादा तेज दर से संक्रमण बढ़ रहा है।

सवाल उठता है कि हम यह कैसे जानें कि टेस्टिंग की संख्या पर्याप्त है या नहीं? प्रति दस लाख की आबादी पर टेस्ट के अलग-अलग आकंड़ों को आदर्श बताया गया है। स्वाभाविक है कि टेस्ट की संख्या का संक्रमितों की संख्या से कोई तो संबंध होना ही चाहिए।

ख़ासकर उस स्थिति में जब ज़्यादातर देशों में टेस्ट करने के  संसाधन सीमित हैं। चीन ने वुहान या बीजिंग में जो किया, बहुत कम देश ऐसा करने में सक्षम है।
तो टेस्टिंग की पर्याप्त्ता सुनिश्चित करने के लिए हमें क्या पैमाने तय करने होंगे? यहां टेस्टिंग दर के लिए कुल टेस्ट की संख्या से पॉजिटिव मामलों की संख्या का अनुपात स्वाभाविक पैमाना है।

जैसे, अगर हमने 20 टेस्ट किए, इनमें हमें सिर्फ़ एक ही केस पॉजिटिव मिला, तो पॉजिटिव दर हुई पांच फ़ीसदी। तो हम कह सकते हैं कि टेस्ट पर्याप्त मात्रा में किए जा रहे हैं। अगर हमें दो पॉजिटिव मामले मिलते हैं, तो दर दस फ़ीसदी पहुंच जाती है। तब हमें चिंतित होने की जरूरत है और हमें अपने टेस्ट का आंकड़ा बढ़ा देना चाहिए।

अगर हमें 20 में से 3 या 4 पॉजिटिव मामले मिलते हैं, तो हमारे सामने एक महामारी है, जो हमारी जानकारी से ज़्यादा तेजी से बढ़ रही है। यह महामारी हमारे पूरे शहर को रौंद सकती है।
ज़ाहिर तौर पर टेस्टिंग करने से महामारी नहीं मिटती।

लेकिन इससे क्वारंटीन, कांट्रेक्ट ट्रेसिंग और हॉस्पिटलाइज़ेशन जैसे दूसरे तरीकों को लागू करने का आधार बनता है। इससे हमें संक्रमण रोकथाम क्षेत्र बनाने और वहां हमारे संसाधनों को लगाने में मदद मिलती है। इस तरह की कार्रवाई के लिए टेस्टिंग के आंकड़े ज़रूरी होते हैं।

इस चीज को ध्यान में रखते हुए हमें मुंबई और दिल्ली के टेस्टिंग आंकड़ों पर नज़र डालनी चाहिए। हमने मई की शुरुआत से जून के आखिर तक के आंकड़ों को इकट्ठा किया है। मतलब यह सात हफ्तों का आंकड़ा है। हमने इन्हें साप्ताहिक आंकड़ों में बदल दिया है, ताकि स्थिति की वास्तविकता पर बेहतर नज़र बनाई जा सके। दिल्ली और मुंबई के लिए साप्ताहिक बार चार्ट कुछ इस तरह है।

जैसा हम चार्ट से देख सकते हैं, दिल्ली और मुंबई दोनों में टेस्ट की तुलना में संक्रमित लोगों का आंकड़ा ज़्यादा है। यह आखिर के दो हफ्तों से 25 से 30 फ़ीसदी के बीच घूम रहा है। इसका मतलब है कि दोनों में टेस्टिंग की दर को तेज करने की जरूरत है। जहां दिल्ली सरकार ने न्यायिक और जनता के दबाव में टेस्टिंग को बढ़ाया है, वहीं मुंबई में अभी यह किया जाना बाकी है।

लेकिन मुंबई के पक्ष में कई चीजे हैं। अब वहां नए मामले वहां लगभग स्थायी हो चुके हैं। लेकिन दिल्ली में दो हफ़्तों के भीतर ही मामले 9000 से बढ़कर 23,000 पहुंच गए। ऐसा कहना सही नहीं है कि इतनी तेजी से मामले बढ़ने के पीछे सिर्फ़ बढ़ी हुई टेस्टिंग है। मुंबई से उल्ट दिल्ली में टेस्ट अनुपात भी तेजी से बढ़ा है

मुंबई में दिल्ली की तुलना में महामारी काबू में है। लेकिन शहर को अब भी अपनी टेस्टिंग बढ़ाने की जरूरत है। हर हफ्ते अब वहां एक स्थायी दर (8000 मामले) से मामले बढ़ रहे हैं और किसी भी इलाके में महामारी तेजी से पैर पसार सकती है।

यह महामारी लंबे वक्त तक हमारे साथ रहने वाली है। यह संभव है कि कोविड-19 संक्रमण से पैदा हुई एंटीबॉडीज़ ज़्यादा लंबे वक्त तक मौजूद न रहें और हमें इस पर नियंत्रण पाने के लिए वैक्सीन पर निर्भर रहना पड़े।

जब तक हमारे पास वैक्सीन  नहीं आ जाता, तब तक पुराने और नए स्वास्थ्य उपाय, जिनमें लोगों के लिए सस्ते अस्पताल शामिल हैं, वही हमारे काम आएंगे। मुंबई और दिल्ली के आंकड़े यही बता रहे हैं।

शुरुआत में हमने एक राज्य के तौर पर महामारी पर काबू पाने में केरल का उदाहरण दिया। अगर हम महामारी पर काबू पाना चाहते हैं, तो हमें एक देश के तौर पर यही करने की जरूरत है।

 

प्रबीर पुरुकायास्थ

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