“हमारी बहू पढ़ी लिखी है और हम चाहते हैं कि वो और आगे बढ़े, इंटरनेट साथी बनकर वो गांव-गांव जाकर महिलाओं को जागरुक करेगी, उन्हे सिखाएगी। इससे बड़ी गर्व की बात और क्या हो सकती है?” गांव की एक माता ने अपने बहू (इंटरनेट साथी) के बारे में कहा। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि “हम सयाने तो हो गए, पर हमारा दिमाग सयाना नहीं हुआ।”
इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मध्यप्रदेश के रीवा जिला के प्रखंड गंगेव के गांव में इंटरनेट साथी को लेकर कितना उत्साह है। इस उत्साह के पीछे कहीं न कहीं उस पिछड़ेपन की टीस भी है जो हर ग्रामीण महिला महसूस करती है। और इंटरनेट साथी उनके लिए एक किसी बड़ी उम्मीद से कम नहीं है।
ऐसी ही कई इंटरनेट साथियों ने कहीं अपने माता-पिता के सपने पूरे किए, तो कहीं समाजिक बंदिशें तोड़ एक नई शुरुआत की, तो कहीं अन्य युवतियों के लिए वो रोल मॉडल बन गईं।
2015 में जब इंटरनेट साथी नामक प्रोग्राम की शुरुआत हुई तो गूगल और टाटा ट्रस्ट ने कभी सोचा भी नहीं था कि हमारी दीदियां ग्रामीण भारत की आदर्श बन जाएंगी। इस कार्यक्रम के तहत देश भर में करीब 30,000 इंटरनेट साथियों ने मिलकर तकरीबन 1.25 करोड़ ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया है।
रीवा, मध्यप्रदेश से इरफान खान की रिपोर्ट
मैं बहुत खुश हू कि मुझे इन्टरनेट साथी से जुड़ने का मौका मिला।