नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) में सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है। लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली-एनसीआर के सभी स्कूलों को 14 और 15 नवंबर तक के लिए बंद करने का आदेश भी जारी कर दिया गया। दिल्ली में ही नहीं, यूपी में भी बागपत जिले के सभी स्कूल को दो दिन तक बंद करने का आदेश दिया गया है।
हालांकि बच्चों की सेहत की खातिर ये फैसला सही जरूर था। लेकिन, बाल दिवस पर प्रदूषण इन बच्चों की खुशी और स्कूलों में उनके शोर पर भारी पड़ गया। गुरुवार को सुबह से ही जब पूरी राजधानी धुंध की चादर में लिपटी हुई नजर आ रही थी, तभी स्कूल बंद होने की खबर ने बच्चों की खुशी का गला घोंट दिया।
लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि भारत कैसे बन गया दुनिया का सबसे प्रदूषित देश?
राजधानी समेत देश के कई शहरों में वायु प्रदूषण की हालत इतनी गंभीर हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट को राज्यों और केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगानी पड़ी। दिल्ली-नोएडा और इसके आस-पास के इलाकों में वायु प्रदूषण आपातकालीन स्थिति में पहुंच गया है। दिल्ली में तो स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि स्कूलों में छुट्टियों की वजह भी प्रदूषण होने लगी है। इससे पहले दिवाली के बाद स्कूलों को बंद करना पड़ा था।
WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में सिर्फ भारत में सवा लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई, जिसमें 67 हजार बच्चों की मौत का कारण घरों से निकलने वाला धुआं औऱ प्रदूषण था।
उत्तर भारत की बिगड़ती वायु गुणवत्ता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता था कि आज से 30 साल पहले फेफड़ों के कैंसर के मरीजों में 80 से 90 फीसदी धूम्रपान करने वाले होते थे। उनमें से ज्यादातर पुरुष होते थे जिनकी आयु 50 से 60 साल के आस-पास होती थी। लेकिन, पिछले छह वर्षों में फेफड़ों के कैंसर के आधे से ज्यादा मरीज धूम्रपान नहीं करते हैं। बड़ी बात यह है कि उनमें से लगभग 40 फीसदी महिलाएं हैं। इन मरीजों की उम्र भी पहले कम हैं। मरीजों में आठ फीसदी तो 30 से 40 साल की उम्र के हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, फेफड़े के कैंसर के बढ़ते रोगियों का कारण डीजल इंजन से निकलने वाला जहरीला धुआं, विनिर्माण के दौरान उड़ने वाली धूल, औद्योगिक उत्सर्जन, पराली का धुआं बन रहा है। इनके कारण हवा में हानिकारक प्रदूषक तत्वों की मात्रा काफी ज्यादा बढ़ गई है।
इलाज के दौरान इन मरीजों के फेफड़ों में जमा काले रंग का पदार्थ भी देखा गया। जो इतना जहरीला है कि जल्द इलाज नहीं होने पर मरीज की जान भी ले सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी किए गए हवा गुणवत्ता मानक से 11 गुना ज्यादा जहरीली हवा भारत की है। नासा और संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के मामले में भारत और चीन क्रमश दुनिया के नंबर एक और दो देश हैं।
हाल ही में जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि एशिया में 420 करोड़ से ज्यादा लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा की तुलना में कई गुना अधिक गन्दी हवा में सांस ले रहे हैं। पहले चीन ने खराब वायु गुणवत्ता ने सबसे अधिक सुर्खियां बटोरी, लेकिन समय के साथ चलते हुए चीन ने अपनी हवा को शुद्ध करने के लिए बहुत काम किया है।
वहीं वायु प्रदूषण के मामले में अब भारत चीन से भी बदतर स्थिति में आ गया है। 2016 के आंकड़ों के अनुसार, भारत और चीन में सुरक्षित सीमा से ऊपर सांस लेने वाले लोगों की समान संख्या है लेकिन भारत में प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक संख्या में हैं। भारत में कम से कम 14 करोड़ लोग डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं।
द लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2017 में वायु प्रदूषण के कारण 12 लाख 40 हजार भारतीयों की मौत हुई। मृतकों में आधे मरीज ऐसे थे जिनकी उम्र 70 साल से कम थी। प्रदूषण के कारण देश की औसत जीवन प्रत्याशा 1.7 वर्ष कम हो गई है। हालात तो यहां तक पहुंच गई है कि दुनिया के 10 मुख्य प्रदूषित शहरों में (जैसे गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद, भिवाड़ी, नोएडा. पटना और लखनऊ) सात शहर भारत में ही स्थित हैं।
-डॉ. म. शाहिद सिद्दीकी
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